जयपुर। अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस फैसले को पर्यावरण सुरक्षा के खिलाफ बताते हुए कहा कि यह अवैध खनन को वैधानिक रास्ता देने जैसा है। गहलोत का आरोप है कि इस निर्णय से अरावली की विशाल पर्वत श्रृंखला को कानूनी संरक्षण से बाहर कर दिया गया है, जिसका असर आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
21 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की सिफारिश को स्वीकार करते हुए अरावली क्षेत्र की नई परिभाषा तय की। आदेश के अनुसार, अब केवल वही भू-आकृति “पहाड़ी” मानी जाएगी, जो अपने आसपास के क्षेत्र से कम से कम 100 मीटर ऊंची हो। इस परिभाषा के लागू होते ही अरावली की बड़ी संख्या में छोटी और मध्यम ऊंचाई वाली पहाड़ियां कानूनी दायरे से बाहर हो गई हैं।
“90 प्रतिशत अरावली को खत्म करने जैसा फैसला”
अशोक गहलोत ने कहा कि अरावली राजस्थान के लिए केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच है। उनके अनुसार, राज्य में अरावली की लगभग 90 प्रतिशत पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंची हैं। ऐसे में नई परिभाषा इन क्षेत्रों को संरक्षण से वंचित कर देती है। उन्होंने इसे “90 प्रतिशत अरावली को मृत्युदंड” देने के बराबर बताया।
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वन संरक्षण कानून होगा बेअसर
पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि इस फैसले के बाद इन क्षेत्रों में वन संरक्षण अधिनियम लागू नहीं रहेगा। इसका सीधा अर्थ है कि खनन गतिविधियों को बिना बड़ी कानूनी बाधा के अनुमति मिल सकती है। गहलोत ने यह भी कहा कि किसी पर्वत की पहचान केवल उसकी ऊंचाई से नहीं, बल्कि उसकी भूवैज्ञानिक संरचना और पारिस्थितिकी भूमिका से तय होती है।
दिल्ली तक पहुंचेगी रेगिस्तान की धूल
गहलोत ने चेतावनी दी कि अरावली पर्वतमाला पश्चिम से आने वाली गर्म हवाओं और रेगिस्तानी धूल को रोकने में अहम भूमिका निभाती है। छोटी पहाड़ियां और टीले भी धूल भरी आंधियों को रोकने में प्रभावी होते हैं। यदि इन क्षेत्रों में खनन शुरू हुआ, तो थार रेगिस्तान का प्रभाव बढ़कर पूर्वी राजस्थान, उत्तर भारत और यहां तक कि नई दिल्ली तक पहुंच सकता है।
जल संकट और गहराएगा
अरावली की पथरीली संरचना वर्षा जल को जमीन के भीतर पहुंचाने में मदद करती है, जिससे भूजल का पुनर्भरण होता है। गहलोत के मुताबिक, इन पहाड़ियों का क्षरण उत्तर-पश्चिम भारत में पहले से मौजूद जल संकट को और गंभीर बना देगा। उन्होंने इसे पर्यावरणीय आपदा की शुरुआत करार दिया।
फैसले पर पुनर्विचार की मांग
अशोक गहलोत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में यह मामला अरावली को बचाने के उद्देश्य से शुरू हुआ था, लेकिन केंद्र की सिफारिश मान लेने से तकनीकी रूप से अधिकांश अरावली कानूनी रूप से “गायब” हो गई। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से अपील की कि वह भावी पीढ़ियों के हित में इस फैसले पर पुनर्विचार करे। गहलोत के शब्दों में, “इतिहास इस तरह के फैसलों को कभी माफ नहीं करता।”


