विपक्ष के सवालों के केंद्र में बिगड़ती हवा
पिछले कुछ सत्रों से संसद में वायु गुणवत्ता को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। खासतौर पर उत्तर भारत के कई शहरों में खतरनाक स्तर तक पहुंच चुके प्रदूषण को लेकर विपक्ष ने सरकार से ठोस और दीर्घकालिक समाधान की मांग की है। डीएमके सांसद डॉ. कनिमोझी एनवीएन सोमू ने यह भी सवाल उठाया था कि क्या अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में बड़े स्तर पर एयर प्यूरीफायर लगाने के लिए केंद्र सरकार आर्थिक सहायता दे रही है।
सरकार ने मानी समस्या की गंभीरता
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव पहले ही यह स्वीकार कर चुके हैं कि वायु प्रदूषण देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। उन्होंने कहा है कि केवल नीतियां बनाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके प्रभावी क्रियान्वयन और जनभागीदारी भी जरूरी है। मंत्री के अनुसार, आम लोगों को एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) और इसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की जानकारी होना बेहद अहम है।
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम पर जोर
सरकार राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत देश के 130 से अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता सुधारने की दिशा में काम कर रही है। इसके अंतर्गत औद्योगिक उत्सर्जन पर नियंत्रण, धूल प्रदूषण कम करने और नियमों के उल्लंघन पर सख्ती के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। शहरी स्थानीय निकायों को जमीनी स्तर पर इन नियमों को लागू करने की अहम जिम्मेदारी दी गई है।
निर्माण स्थलों पर सख्ती
केंद्र सरकार ने 20,000 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्रफल वाली निर्माण परियोजनाओं में एंटी-स्मॉग गन का उपयोग अनिवार्य कर दिया है। इसके साथ ही दिल्ली सरकार को निर्माण एवं विध्वंस कचरे के लिए निर्धारित जोन बनाने की सलाह दी गई है, ताकि अवैध डंपिंग और धूल प्रदूषण पर रोक लगाई जा सके।
दिल्ली में नए नियम लागू
राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार ने कई सख्त कदम उठाए हैं। ‘नो पीयूसी, नो फ्यूल’ नियम लागू किया जा रहा है, वहीं दिल्ली के बाहर पंजीकृत केवल बीएस-6 मानक वाली गाड़ियों को ही शहर में प्रवेश की अनुमति होगी। निर्माण सामग्री ले जाने वाले ट्रकों पर रोक जारी रहेगी और ग्रैप (GRAP) के तहत निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध के उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
आज की लोकसभा चर्चा से यह साफ हो जाएगा कि सरकार और विपक्ष इस गंभीर पर्यावरणीय संकट से निपटने के लिए किस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं।