विजय दिवस 1971: भारतीय शौर्य और रणनीति की वह जीत जिसने इतिहास बदल दिया
16 दिसंबर 1971 वह दिन है जब भारत ने केवल एक युद्ध नहीं जीता, बल्कि न्याय, मानवता और राष्ट्रगौरव का इतिहास रचा।
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दिसंबर भारतीय सैन्य इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। इसी दिन ढाका में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सशस्त्र बलों के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण किया। 90,000 से अधिक सैनिकों का समर्पण आधुनिक सैन्य इतिहास की सबसे बड़ी पराजयों में गिना जाता है। इस निर्णायक विजय के साथ बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया और भारत की सैन्य क्षमता को वैश्विक मान्यता मिली।
दिल्ली की सड़कों में बसती 1971 के वीरों की स्मृतियां
भारत की राजधानी दिल्ली केवल सत्ता का केंद्र नहीं, बल्कि 1971 युद्ध के कई अमर नायकों की जीवित स्मृतियों का साक्ष्य भी है। कर्तव्यपथ, दिल्ली कैंट और आरके पुरम जैसे इलाके उन योद्धाओं की कहानियां कहते हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर राष्ट्र का मस्तक ऊंचा किया।
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फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों: आसमान का शेर
1971 युद्ध के दौरान फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों श्रीनगर एयरबेस की रक्षा में तैनात थे। 14 दिसंबर को उन्होंने पाकिस्तान के दो सेबर जेट विमानों को मार गिराया। मात्र 26 वर्ष की आयु में वे वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी असाधारण वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनका बलिदान भारतीय वायुसेना के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है।
एयर चीफ मार्शल इदरीस हसन लतीफ: युद्ध का मस्तिष्क
1971 में भारतीय वायुसेना की रणनीतिक सफलता के पीछे एयर चीफ मार्शल इदरीस हसन लतीफ की निर्णायक भूमिका रही। सहायक वायुसेनाध्यक्ष के रूप में उन्होंने हर मिशन, हर यूनिट और हर हवाई हमले की योजना पर बारीकी से नजर रखी। पूर्वी मोर्चे पर रहते हुए उन्होंने पाकिस्तान की हवाई ताकत को निष्क्रिय कर दिया।
अरुण खेत्रपाल: शकरगढ़ का अमर योद्धा
सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल मात्र 21 वर्ष की आयु में 1971 युद्ध के सबसे युवा परमवीर चक्र विजेता बने। शकरगढ़ सेक्टर में उन्होंने दुश्मन के दस से अधिक टैंकों को नष्ट किया। उनका टैंक जल चुका था, लेकिन उन्होंने अंतिम सांस तक मोर्चा नहीं छोड़ा। उनका साहस भारतीय सैन्य इतिहास की अमर गाथा है।
जनरल जे.एफ.आर. जैकब: आत्मसमर्पण लिखवाने वाला रणनीतिकार
पूर्वी मोर्चे पर भारत की ऐतिहासिक विजय के सूत्रधार लेफ्टिनेंट जनरल जे.एफ.आर. जैकब थे। उन्होंने पाकिस्तानी कमांडर को सीमित समय में आत्मसमर्पण का अल्टीमेटम दिया, जिसके परिणामस्वरूप 16 दिसंबर 1971 को ढाका में ऐतिहासिक हस्ताक्षर हुए।
लौंगेवाला और बासन्तर: जहां युद्ध की दिशा बदली
लौंगेवाला में मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में सीमित संसाधनों के बावजूद भारतीय सैनिकों ने पूरी रात दुश्मन को रोके रखा। वहीं बासन्तर नदी पर भारतीय इंजीनियरों ने टैंकों के लिए मार्ग बनाकर पाकिस्तान की रणनीति को ध्वस्त कर दिया। यही क्षण युद्ध का निर्णायक मोड़ बना।
विजय दिवस का अर्थ: स्मरण, सम्मान और संकल्प
विजय दिवस केवल जीत का उत्सव नहीं, बल्कि उन हजारों बलिदानों की स्मृति है जिनकी बदौलत भारत आज सुरक्षित और संप्रभु है। यह दिन हमें अपने इतिहास से सीख लेने और भविष्य के प्रति सजग रहने का संकल्प देता है।
भारत ने 1971 में केवल युद्ध नहीं जीता, उसने इतिहास को नई दिशा दी।


