राजस्थान में नशे का स्वरूप बदल रहा है, खतरनाक ड्रग्स की बढ़ती खपत
राजस्थान में नशे का परंपरागत स्वरूप अब तेजी से बदल रहा है। अब प्राकृतिक स्रोतों जैसे गांजा, अफीम और डोडा-पोस्त की बजाय खतरनाक कैमिकल और मेडिकेटेड टेबलेट-कैप्सूल का उपयोग बढ़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये सिंथेटिक और केमिकल ड्रग्स पहले खुराक में ही गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं और कई बार जानलेवा भी साबित हो रहे हैं।
राज्य की फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) के आंकड़ों के अनुसार, हर माह औसतन 500 नशा सामग्री के सैंपल जांच के लिए आते हैं, जिनमें से करीब 200 सैंपल पूरी तरह से खतरनाक कैमिकल युक्त पाए जाते हैं। एफएसएल निदेशक डॉ. अजय शर्मा के अनुसार, इन पदार्थों में ऐसे रसायन मिलाए जाते हैं जो दिमाग, तंत्रिका तंत्र और आंतरिक अंगों पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।
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तीव्र असर और अधिक मुनाफा
विशेषज्ञ बताते हैं कि तस्कर अब नशे के तीव्र असर और कम मात्रा में अधिक मुनाफे के लिए प्राकृतिक नशे की जगह सिंथेटिक ड्रग्स का सहारा ले रहे हैं। यही कारण है कि एफएसएल में आने वाले सैंपलों की प्रकृति में तेजी से बदलाव देखा जा रहा है।
राज्य के विभिन्न जिलों में ड्रग्स की पकड़ भी लगातार बढ़ रही है। हाल ही में झुंझुनूं में पुलिस ने एक मुर्गी फार्म में छिपी मेफेड्रोन (एमडी) ड्रग्स फैक्टरी पकड़ी। कार्रवाई में करीब 10 किलो एमडी ड्रग्स, बड़ी मात्रा में कैमिकल और उपकरण जब्त किए गए, जिनकी कीमत लगभग 100 करोड़ रुपए आंकी गई। इस मामले में नांद का बास निवासी अनिल सिहाग को गिरफ्तार किया गया, जबकि उसका साथी फरार है।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में नशे की बढ़ती समस्या
सांसदों ने भी राजस्थान में नशे की बढ़ती समस्या को संसद में उठाया है। जयपुर की सांसद मंजू शर्मा ने कहा कि यह समस्या युवाओं और स्कूली बच्चों के भविष्य को गंभीर खतरे में डाल रही है। उन्होंने बताया कि नशे के खिलाफ लड़ाई केवल कानून तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि यह समाज की सामूहिक जिम्मेदारी भी है।
सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने राज्यसभा में ड्रग्स की सप्लाई चेन तोड़ने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स गठन की मांग की। साथ ही स्कूल और कॉलेज स्तर पर जागरूकता अभियान, नशामुक्ति केंद्रों का सशक्तिकरण और युवाओं को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए प्रभावी नीति बनाने की जरूरत बताई।
श्रीगंगानगर में मेडिकेटेड ड्रग्स का दुरुपयोग
श्रीगंगानगर जिले में प्रेगाबालिन, टेपेंराडोल और जोपिलोन जैसी टेबलेट की मांग कोड वर्ड्स में की जा रही है, जैसे ‘सिग्नेचर’, ‘जॉडियर’, ‘हरा तोता’। पुलिस के अनुसार, इन दवाओं का बिना चिकित्सकीय सलाह सेवन गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि प्रेगाबालिन से आंखों की रोशनी जा सकती है और आत्मघाती विचार उत्पन्न हो सकते हैं।
पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारियों का सुझाव है कि इन साल्ट वाले मेडिकेटेड ड्रग्स को एनडीपीएस अधिनियम में शामिल करना जरूरी है, ताकि अवैध बिक्री और तस्करी पर प्रभावी नियंत्रण लगाया जा सके।
निष्कर्ष
राजस्थान में नशे की प्रवृत्ति तेजी से बदल रही है। प्राकृतिक नशे की जगह खतरनाक कैमिकल और मेडिकेटेड ड्रग्स ले रहे हैं। पुलिस और सांसद दोनों ने इस पर नियंत्रण के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता जताई है। विशेषज्ञों और एफएसएल के आंकड़े यह स्पष्ट करते हैं कि इस नई चुनौती से निपटने के लिए न केवल कानून बल्कि सामाजिक जागरूकता, नशामुक्ति केंद्र और प्रभावी नीति की भी आवश्यकता है।
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