आज 15 दिसंबर को पूरा देश अपने महान सपूत, स्वतंत्रता संग्राम के मजबूत स्तंभ और आधुनिक भारत के शिल्पकार सरदार वल्लभभाई पटेल की पुण्य तिथि पर उन्हें श्रद्धा और कृतज्ञता के साथ स्मरण कर रहा है। सरदार पटेल केवल स्वतंत्रता आंदोलन के नेता नहीं थे, बल्कि वे भारत की एकता, अखंडता और मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था के प्रतीक रहे। उनके बिना आज के संगठित भारत की कल्पना अधूरी मानी जाती है।
साधारण जीवन से असाधारण व्यक्तित्व तक
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के करमसद गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। प्रारंभिक जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन आत्मविश्वास और अनुशासन ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। सीमित साधनों के बावजूद उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की और इंग्लैंड जाकर वकालत की शिक्षा प्राप्त की। स्वदेश लौटने के बाद वे एक सफल और प्रतिष्ठित अधिवक्ता बने, जिनकी पहचान उनकी स्पष्ट सोच और दृढ़ निर्णय क्षमता थी।
गांधी से प्रेरणा, आंदोलन को जीवन समर्पित
महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद सरदार पटेल का जीवन पूरी तरह राष्ट्रसेवा को समर्पित हो गया। उन्होंने वकालत छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम का मार्ग चुना। खेड़ा और बारडोली सत्याग्रह में उनके नेतृत्व और संगठन क्षमता ने उन्हें जननायक बना दिया। बारडोली आंदोलन की ऐतिहासिक सफलता के बाद जनता ने उन्हें सम्मानपूर्वक “सरदार” की उपाधि दी, जो आगे चलकर उनकी पहचान बन गई।
- Advertisement -
स्वतंत्रता संग्राम में मजबूत स्तंभ
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सरदार पटेल ने कई बार जेल यात्राएं कीं। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ऐसे नेता थे, जो संगठन और अनुशासन के लिए जाने जाते थे। कठिन परिस्थितियों में भी वे व्यावहारिक और राष्ट्रहित में निर्णय लेने से पीछे नहीं हटे। भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर आज़ादी की प्रक्रिया तक, हर चरण में उनकी भूमिका निर्णायक रही।
रियासतों का विलय और राष्ट्र की एकता
आजाद भारत के पहले गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में सरदार पटेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी 562 से अधिक देशी रियासतों का भारत में विलय। उन्होंने संवाद, कूटनीति और आवश्यकता पड़ने पर कठोर कदमों के जरिए इस ऐतिहासिक कार्य को सफल बनाया। हैदराबाद, जूनागढ़ और अन्य रियासतों के विलय में उनका नेतृत्व निर्णायक रहा। यदि सरदार पटेल का साहसिक निर्णय और दृढ़ इच्छाशक्ति न होती, तो भारत का स्वरूप आज अलग हो सकता था।
क्यों कहलाए ‘लौह पुरुष’
सरदार पटेल को ‘लौह पुरुष’ यूं ही नहीं कहा गया। उनके निर्णय भावनाओं पर नहीं, बल्कि राष्ट्रहित और यथार्थ पर आधारित होते थे। वे मानते थे कि एकता के बिना स्वतंत्रता अधूरी है। यही सोच उनके पूरे जीवन और कार्यों में दिखाई देती है।
प्रशासनिक दृष्टि और विरासत
प्रशासनिक क्षेत्र में भी सरदार पटेल का योगदान अमूल्य है। उन्होंने मजबूत और निष्पक्ष प्रशासन को लोकतंत्र की रीढ़ माना। भारतीय सिविल सेवा को उन्होंने देश की “इस्पात फ्रेम” बताया और इसे सशक्त बनाए रखने पर जोर दिया। आज की प्रशासनिक व्यवस्था उनकी दूरदृष्टि का ही परिणाम है।
आज के भारत में प्रासंगिकता
आज उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें याद करना केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि उनके विचारों को अपनाने का अवसर भी है। राष्ट्रीय एकता, अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने की उनकी सीख आज भी उतनी ही जरूरी है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी उनकी केवल भौतिक प्रतिमा नहीं, बल्कि उस विचारधारा का प्रतीक है, जो भारत को एक सूत्र में बांधती है।
सरदार वल्लभभाई पटेल अपने विचारों, कर्मों और राष्ट्र के प्रति समर्पण के कारण सदैव अमर रहेंगे। आज कृतज्ञ राष्ट्र नमन करता है उस लौह पुरुष को, जिसने बिखरे भारत को एक मजबूत और आत्मविश्वासी राष्ट्र का रूप दिया।


