नोएडा मुआवजा घोटाला: सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश, SIT को दो महीने में रिपोर्ट जरूरी
नोएडा में जमीन अधिग्रहण मुआवजे से जुड़ा 117 करोड़ रुपये का कथित घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए जांच में तेजी लाने और दो महीने की तय समयसीमा के भीतर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। तीन गांव—गेझा तिलपताबाद, नंगला और भूड़ा—इस घोटाले के केंद्र में हैं, जहां अपात्र किसानों को करोड़ों रुपये का भुगतान किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा: किसानों को नहीं, अधिकारियों की भूमिका को परखा जाएगा
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने स्पष्ट किया कि यह जांच किसानों को परेशान करने के लिए नहीं है, बल्कि उन अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए है जिन्होंने मुआवजा वितरण में गड़बड़ी की। अदालत ने किसानों को समन भेजे जाने की शिकायत पर भी टिप्पणी की और कहा कि जांच के दौरान किसी किसान को अनावश्यक दबाव में नहीं डाला जाएगा।
SIT को मिला दो महीने का समय, बहानेबाज़ी पर अदालत ने जताई नाराजगी
सुनवाई के दौरान नोएडा प्राधिकरण की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि SIT ने अपनी रिपोर्ट दे दी है और आगे की जांच के लिए तीन महीने और मांगे। कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि पर्याप्त समय पहले ही दिया जा चुका है। इसलिए अब केवल दो महीने का समय अतिरिक्त दिया जा रहा है और जांच तेजी से पूरी होनी चाहिए।
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12 से अधिक अधिकारियों पर निगाह, CEO से लेकर ACEO तक फंसे
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि पिछले 10–15 वर्षों में मुआवजा वितरण से जुड़े सभी अधिकारियों की जांच हो। इसी निर्देश के बाद 12 से ज्यादा CEO, ACEO, SEO और OSD जांच के दायरे में आ गए हैं। अदालत का मानना है कि इतनी बड़ी वित्तीय गड़बड़ी केवल दो-तीन कर्मचारियों की वजह से संभव नहीं हो सकती।
प्राधिकरण की दलील: किसानों ने दी गलत जानकारी, पर विभाग ने नहीं किया सत्यापन
नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों ने कहा कि कई किसानों ने गलत दावे किए और बताया कि उनका मामला हाईकोर्ट में लंबित है, जिसमें अधिक दर से मुआवजे की मांग की गई है। उनके कथन बिना सत्यापन के ही स्वीकार कर लिए गए और इसी वजह से फाइलें आगे बढ़ती गईं। कोर्ट ने इस लापरवाही पर गंभीर सवाल उठाए।
तीन गांवों में 117 करोड़ की गड़बड़ी, अदालत ने कहा—यह संगठित स्तर का मामला
गेझा तिलपताबाद, नंगला और भूड़ा गांवों में अपात्र किसानों को करोड़ों रुपये का भुगतान कर दिया गया। SIT की पूर्व रिपोर्ट पर भी अदालत ने टिप्पणी की थी कि इतने बड़े घोटाले में सिर्फ दो-तीन नाम जिम्मेदार नहीं हो सकते। इसी आधार पर कोर्ट ने जांच का दायरा बढ़ाते हुए CEO, ACEO और CLA स्तर तक सभी को शामिल करने को कहा।
2021 में खुलासा, 2015 में पहला बड़ा मामला
मामले का प्रारंभिक खुलासा 2021 में हुआ था, जब तत्कालीन CEO रितु माहेश्वरी ने जांच समिति गठित की। 2015 में एक अपात्र किसान रामवती को 7 करोड़ रुपये से अधिक का मुआवजा देने का मामला सामने आया था। इसके बाद कई अधिकारियों पर कार्रवाई हुई और 11 अन्य मामलों में भी गड़बड़ी उजागर हुई।
किन अधिकारियों के नाम उभरे?
जिन अधिकारियों के नाम सामने आए हैं, उनमें तत्कालीन सहायक विधि अधिकारी वीरेंद्र सिंह नागर, विधि अधिकारी दिनेश कुमार सिंह, विधि सलाहकार राजेश कुमार और दिवंगत कनिष्ठ सहायक मदनलाल मीना का उल्लेख है। अब सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश के बाद लगभग डेढ़ दशक में प्राधिकरण में कार्यरत सभी अधिकारियों की भूमिका खंगाली जाएगी।


