सुप्रीम कोर्ट की सख्त नजर: राजस्थान के 2025 धर्मांतरण विरोधी कानून पर संवैधानिक परीक्षण शुरू
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलिजन एक्ट, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार से विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है। यह नोटिस ऐसे समय में जारी हुआ है जब देश के कई राज्यों के समान कानून पहले से ही न्यायिक समीक्षा के दायरे में हैं। अदालत ने संकेत दिया कि वह सभी मामलों को एक साथ सुनकर व्यापक निर्देश जारी कर सकती है।
याचिका दायर करने वाली संस्था और कोर्ट की प्रारंभिक कार्रवाई
कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया ने इस कानून को संविधान के खिलाफ बताते हुए याचिका दायर की थी। जस्टिस दिपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस याचिका को अन्य राज्यों के लंबित मामलों के साथ टैग कर दिया, ताकि सभी मुद्दों पर एकसमान कानूनी दृष्टिकोण अपनाया जा सके।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता और अनुच्छेद 14, 19 और 25 में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
केंद्र का पक्ष: कई समान मामले पहले से लंबित
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कई अन्य राज्यों के धर्मांतरण कानून भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती का सामना कर रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि अदालत इन सभी मामलों को एक साथ सुनकर कानून की संवैधानिक सीमाओं को स्पष्ट कर सकती है। अदालत ने इस पर सहमति जताई और आगे के चरणों के लिए समय निर्धारित किया।
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राजस्थान कानून: कठोर सजा और संवेदनशील प्रावधान
राजस्थान का 2025 का कानून कथित तौर पर जबरन, धोखे या प्रलोभन से कराया गया धर्मांतरण रोकने के उद्देश्य से बनाया गया है। इसमें कुछ बेहद कठोर प्रावधान शामिल हैं:
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सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में 20 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा।
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धोखे से धर्मांतरण करवाने पर 7 से 14 वर्ष की कैद।
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नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या दिव्यांग व्यक्ति का धर्मांतरण कराने पर 10 से 20 वर्ष तक की सजा और कम से कम 10 लाख रुपये का जुर्माना।
कानून के आलोचकों का कहना है कि इसकी भाषा व्यापक और अस्पष्ट है, जिससे दुरुपयोग की आशंका बढ़ जाती है।
अन्य राज्यों के कानून भी जांच के दायरे में
सुप्रीम कोर्ट पहले ही निर्देश दे चुका है कि सभी राज्यों—जिनमें उत्तराखंड, कर्नाटक, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और झारखंड शामिल हैं—को अपनी-अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। अदालत ने कहा था कि जब तक पूरा रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होता, तब तक किसी भी कानून पर रोक लगाने की याचिका पर निर्णय नहीं लिया जाएगा।
आगे की प्रक्रिया
अदालत ने राजस्थान सरकार को निर्धारित समय-सीमा के भीतर पूर्ण जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। उसके बाद सभी राज्यों से जुड़े मामलों को एक साथ सूचीबद्ध कर व्यापक सुनवाई की जाएगी। यह सुनवाई तय करेगी कि देश में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता किन मानदंडों पर परखी जाएगी।


