सुप्रीम कोर्ट में एआई आधारित फर्जी केसों का मामला, जजों ने जताई गहरी चिंता
सुप्रीम कोर्ट में एक हाई-प्रोफाइल कारोबारी विवाद की सुनवाई उस समय अप्रत्याशित मोड़ ले गई, जब पता चला कि वादी पक्ष की ओर से दाखिल प्रत्युत्तर में कई ऐसे केसों का हवाला दिया गया है, जो न्यायिक रिकॉर्ड में मौजूद ही नहीं हैं। इन संदर्भों की जांच पर स्पष्ट हुआ कि कानूनी निष्कर्ष कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की मदद से तैयार किए गए थे, जिनमें तथ्यात्मक त्रुटियां ही नहीं, बल्कि झूठे केस कानून भी जोड़े गए थे। अदालत ने इसे न्यायिक प्रक्रिया के लिए खतरनाक बताते हुए कहा कि ऐसी गलती को मामूली चूक मानकर छोड़ना संभव नहीं।
रिकॉर्ड में नहीं मिले केस, कोर्ट ने जताई गहरी आशंका
यह मामला ओंकारा एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड बनाम गस्टाड होटल्स प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ा है, जो पहले NCLAT में सुना गया और अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने बताया कि गस्टाड होटल्स की ओर से दाखिल प्रत्युत्तर में कई फर्जी केस शामिल किए गए हैं। कुछ मामलों के नाम वास्तविक दिखते हैं, लेकिन उनमें लिखे गए कानूनी निष्कर्ष पूरी तरह मनगढ़ंत पाए गए।
कौल के अनुसार, कोर्ट प्रतिदिन बड़ी संख्या में मामलों की सुनवाई करता है और हर उद्धृत केस की तस्दीक कर पाना हमेशा संभव नहीं। यदि अदालत अनजाने में ऐसे फर्जी संदर्भों पर भरोसा कर ले, तो न्याय का आधार ही कमजोर पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट: यह सिर्फ एआई का मुद्दा नहीं, न्याय को भ्रमित करने की कोशिश
बेंच ने स्पष्ट कहा कि यह गलती केवल एआई उपकरणों पर निर्भरता भर नहीं है, बल्कि अदालत को गुमराह करने की गंभीर कवायद प्रतीत होती है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने टिप्पणी की कि इस तरह के दस्तावेज न्यायिक प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं और कोर्ट इसे गहराई से जांचे बिना नहीं छोड़ सकती।
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वरिष्ठ अधिवक्ता सीए सुंदरम ने कही साफ बात: “मैं कभी इतना शर्मिंदा नहीं हुआ”
गस्टाड होटल्स की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीए सुंदरम ने कोर्ट के सामने स्वीकार किया कि दाखिल किया गया मसौदा गलत था और यह वादी के निर्देश पर तैयार कराया गया। उन्होंने कहा कि दस्तावेज फाइल करने वाले वकील ने बिना शर्त माफी मांगते हुए गलती स्वीकार कर ली है।
हालांकि कोर्ट ने दस्तावेज वापस लेने की अनुमति देने से इनकार करते हुए पूछा कि जब हलफनामे में साफ लिखा है कि मसौदा वादी के मार्गदर्शन में तैयार हुआ, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी केवल AOR पर कैसे डाली जा सकती है?
एआई के इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी
घटना की गंभीरता देखते हुए अदालत ने संकेत दिया कि आने वाले समय में एआई आधारित कानूनी मसौदों के प्रति न्यायपालिका को विशेष सतर्कता बरतनी होगी। कोर्ट ने कहा कि वकीलों और पक्षकारों का दायित्व है कि तकनीक का उपयोग जिम्मेदारी के साथ करें।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई उसके मेरिट पर जारी रखते हुए साफ कहा कि तकनीक सहायक हो सकती है, लेकिन झूठे डेटा को वैधता नहीं दे सकती। यह घटना भारतीय न्याय व्यवस्था में एआई के दुरुपयोग से जुड़े जोखिमों की एक महत्वपूर्ण चेतावनी बनकर सामने आई है।


