बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को लेकर एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल (ICT) ने उपलब्ध दस्तावेजों और गवाहियों के आधार पर जुलाई 2024 के छात्र-नेतृत्व वाले विद्रोह में कथित मानवता-विरोधी अपराधों का दोषी ठहराते हुए उन्हें मौत की सजा सुनाई है। अदालत ने 17 नवंबर 2025 को जारी 458 पृष्ठों के फैसले में कहा कि उस अवधि में शांतिपूर्ण और निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग करने की अनुमति देने में हसीना की मुख्य भूमिका थी।
भारत में निर्वासन के दौरान चली सुनवाई
रिपोर्टों के अनुसार, 2024 के अगस्त महीने से हसीना भारत में निर्वासन में हैं और ट्रायल उनकी अनुपस्थिति में जारी रहा। यूनुस सरकार के अभियोजन पक्ष ने अदालत में यह दावा किया कि विद्रोह के दौरान हुई मौतों और हिंसा के लिए हसीना प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थीं, और इसलिए उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
कोर्ट ने पेश किया कथित ऑडियो
ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाते समय एक कथित ऑडियो रिकॉर्डिंग भी सार्वजनिक की, जिसमें हसीना को पुलिस प्रमुख से बल प्रयोग का निर्देश देते हुए बताया गया है। अभियोजन पक्ष ने इसे प्रमुख साक्ष्य बताया। गवाहों, मानवाधिकार संगठनों और आधिकारिक रिपोर्टों के हवाले से कोर्ट ने कहा कि 15 जुलाई से 15 अगस्त 2024 के बीच 1400 से अधिक लोग मारे गए, जिसे अदालत ने “संगठित हिंसा” करार दिया।
विद्रोह कैसे शुरू हुआ?
जुलाई 2024 का यह विद्रोह उस समय भड़का, जब जनवरी 2024 के चुनावों के बाद विपक्षी दलों को दबाने के आरोप लगे। छात्र संगठनों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया, जो देखते ही देखते हिंसक झड़पों में बदल गया। आरोप है कि पुलिस ने कई जगह सीधी गोलीबारी की। अदालत ने अपने फैसले में माना कि तत्कालीन प्रशासन की कार्रवाई “अनुपातहीन” और “राजनीतिक दमन” की श्रेणी में आती है।
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पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल और पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून पर भी आरोप तय किए गए हैं। अल-मामून की गवाही ने ट्रायल को निर्णायक मोड़ दिया, ऐसा अभियोजन पक्ष का कहना है।
अभियोजन पक्ष ने लगाए पांच बड़े आरोप
ट्रिब्यूनल के समक्ष हसीना के खिलाफ प्रमुख आरोप निम्न थे:
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हत्या
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जबरन गायब करना
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यातनाएं
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राजनीतिक दमन
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राज्य मशीनरी का दुरुपयोग
अदालत ने इन आरोपों को पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर सिद्ध माना।
भारत को भेजा गया प्रत्यर्पण अनुरोध
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने इस निर्णय को “ऐतिहासिक” बताते हुए भारत से हसीना के प्रत्यर्पण का अनुरोध किया है। दिल्ली ने अभी तक आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। सुरक्षा कारणों से ढाका में कड़ी निगरानी और शूट-एट-साइट आदेश लागू हैं।
अवामी लीग ने फैसले को राजनीतिक बदला बताया
पूर्व सत्ताधारी दल अवामी लीग ने इस फैसले को “कंगारू कोर्ट का निर्णय” बताया और कहा कि यह राजनीतिक प्रतिशोध है। दूसरी ओर, विद्रोह में मारे गए लोगों के परिवारों ने इसे न्याय की दिशा में पहली बड़ी प्रगति बताया।
क्या होगा आगे?
हसीना की कानूनी टीम ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के समक्ष अपील दायर की है। उनका कहना है कि ट्रायल में सभी पक्षों की भूमिका की निष्पक्ष जांच नहीं हुई। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला फरवरी में होने वाले बांग्लादेश के चुनावों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है और दक्षिण एशिया की कूटनीतिक परिस्थितियां भी बदल सकती हैं।
