दिल्ली धमाके की जांच में फंसे अल-फलाह यूनिवर्सिटी के संस्थापक, सामने आया पुराना फर्जीवाड़ा
नई दिल्ली/फरीदाबाद। दिल्ली में हुए हालिया धमाके की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, हरियाणा के फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी के संस्थापक जावेद अहमद सिद्दीकी एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गए हैं। केंद्र सरकार ने इस यूनिवर्सिटी के फंडिंग सोर्स और वित्तीय गतिविधियों की जांच के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ED) को निर्देश जारी किए हैं।
जांच में यह खुलासा हुआ है कि सिद्दीकी ने धमाके के तीन मुख्य संदिग्धों में से दो डॉक्टरों — डॉ. मुजम्मिल शकील और डॉ. शाहीन सईद — को यूनिवर्सिटी में नौकरी पर रखा था।
कॉर्पोरेट नेटवर्क और पुराने आपराधिक मामले बने शक का आधार
जांच एजेंसियों का ध्यान जावेद सिद्दीकी की ओर इसलिए गया क्योंकि उनके पास नौ कंपनियों का विस्तृत कॉर्पोरेट नेटवर्क है, जिनमें से कई का संचालन संदिग्ध तरीके से हुआ। इसके अलावा, उनके खिलाफ पहले भी धोखाधड़ी और जाली दस्तावेजों के इस्तेमाल से जुड़ा एक मामला दर्ज किया जा चुका है।
- Advertisement -
इस पुराने केस में सिद्दीकी और उनके सहयोगी जावेद अहमद पर आपराधिक विश्वासघात, फर्जी शेयर सर्टिफिकेट जारी करने और आर्थिक हेराफेरी के आरोप लगे थे।
एक ही पते से संचालित होती थीं 9 कंपनियां
सिद्दीकी का जन्म मध्य प्रदेश के मऊ जिले में हुआ था और उन्होंने दिल्ली के जामिया नगर स्थित अल-फलाह हाउस से अपना व्यावसायिक नेटवर्क खड़ा किया। उनके नियंत्रण में रही नौ कंपनियां शिक्षा, वित्त, ऊर्जा और सॉफ्टवेयर सेवाओं के क्षेत्र में कार्यरत थीं।
दिलचस्प बात यह है कि इन सभी कंपनियों का पंजीकृत पता एक ही स्थान पर दर्ज था — जामिया नगर स्थित वही “अल-फलाह हाउस” जो अब जांच के घेरे में है।
2019 के बाद कंपनियों की गतिविधियां ठप
सूत्रों के मुताबिक, इन कंपनियों में से अधिकांश 2019 के बाद निष्क्रिय या बंद हो गईं, जबकि कुछ नाम मात्र की गतिविधियां जारी रहीं।
हालांकि, अल-फलाह मेडिकल रिसर्च फाउंडेशन, जो 1997 में एक छोटे इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में शुरू हुआ था, बाद में 78 एकड़ के परिसर में विकसित हुआ और यूनिवर्सिटी का मुख्य संस्थान बन गया।
लेकिन दिल्ली धमाके में संदिग्ध डॉक्टरों की भूमिका उजागर होने के बाद यह संस्था भी अब NAAC और ED जांच के दायरे में आ गई है।
7.5 करोड़ की ठगी और गिरफ्तारी की कहानी
जावेद सिद्दीकी का नाम पहली बार सुर्खियों में तब आया जब उनके खिलाफ न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस स्टेशन, दिल्ली में एक केस दर्ज हुआ। इस मामले में आरोप था कि उन्होंने और उनके साथियों ने फर्जी निवेश योजनाओं के जरिए निवेशकों को 7.5 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया।
पुलिस जांच में सामने आया कि यह पैसा अल-फलाह ग्रुप ऑफ कंपनीज में निवेश के नाम पर लिया गया था, लेकिन बाद में इसे निजी खातों में ट्रांसफर कर दिया गया।
इस केस में सिद्दीकी को 2001 में गिरफ्तार किया गया, और 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने पाया कि साक्ष्यों के अनुसार उनके शेयर सर्टिफिकेट्स पर हस्ताक्षर जाली थे।
बाद में, जब उन्होंने निवेशकों को धोखाधड़ी से ली गई रकम लौटाने की सहमति दी, तो 2004 में उन्हें जमानत मिल पाई।
अब ED जांच की जद में यूनिवर्सिटी और फंडिंग
केंद्रीय एजेंसियां अब यह जांच कर रही हैं कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी और उससे जुड़ी कंपनियों की फंडिंग कहां से आ रही थी और क्या इनका किसी आतंकी नेटवर्क या संदिग्ध फाइनेंसर से कोई संबंध रहा है।
प्रारंभिक जांच में कई फर्जी लेनदेन और विदेशी दान स्रोतों पर संदेह जताया गया है।
