कर्नाटक सरकार को बड़ा झटका लगा है। राज्य सरकार द्वारा जारी उस आदेश पर कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ पीठ ने अंतरिम रोक लगा दी है, जिसके तहत निजी संगठनों को सरकारी परिसरों या सार्वजनिक स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित करने से पहले अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया था। इस आदेश को कई लोगों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गतिविधियों को सीमित करने के प्रयास के रूप में देखा था।
क्या था सरकार का आदेश
कर्नाटक सरकार ने हाल ही में एक प्रशासनिक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि राज्य की किसी भी सरकारी संपत्ति, पार्क, सड़क या सार्वजनिक स्थल पर 10 से अधिक लोगों के एकत्रित होने, कार्यक्रम आयोजित करने, पथ संचलन करने या शाखा लगाने से पहले प्रशासनिक अनुमति लेना जरूरी होगा।
सरकार ने अपने आदेश में कहा था कि यह कदम सार्वजनिक संपत्तियों — जैसे भूमि, भवन, खेल के मैदान, जलाशयों और सड़कों — के संरक्षण और उचित उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।
याचिका दायर करने वाले संगठन का पक्ष
इस आदेश को ‘पुनशचैतन्य सेवा समस्थे’ नामक संगठन ने कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ बेंच में चुनौती दी।
संगठन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अशोक हरनहल्ली ने तर्क दिया कि राज्य सरकार का यह आदेश संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन है।
उन्होंने कहा, “सरकार कह रही है कि 10 से अधिक लोग इकट्ठा होने से पहले अनुमति लें। यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सभा के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।”
वकील ने आगे कहा कि जब पहले से ही पुलिस कानून और सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़े प्रावधान लागू हैं, तो फिर ऐसा आदेश जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
- Advertisement -
हाईकोर्ट की टिप्पणी और आदेश
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने सरकार के आदेश को संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए उस पर अंतरिम रोक लगा दी।
कोर्ट ने कहा कि यह आदेश नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सीमित करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत संरक्षित हैं।
राज्य सरकार के वकील ने कोर्ट से इस मामले पर जवाब देने के लिए एक दिन का समय मांगा, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने अगली सुनवाई 17 नवंबर तक स्थगित कर दी।
राजनीतिक संदर्भ में बढ़ी हलचल
कर्नाटक में हाल के दिनों में संघ की शाखाओं और अन्य सामाजिक संगठनों की गतिविधियों को लेकर विवाद बढ़ा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार का यह आदेश संघ की जमीनी गतिविधियों को प्रशासनिक स्तर पर सीमित करने का प्रयास था।
हालांकि अब अदालत के इस फैसले के बाद राज्य सरकार को अपने आदेश का संवैधानिक औचित्य साबित करना होगा।
निष्कर्ष
कर्नाटक हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल राज्य सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का एक महत्वपूर्ण उदाहरण भी है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि 17 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई में राज्य सरकार इस आदेश को कैसे न्यायोचित ठहराती है।
