भीषण अग्निकांड ने खोली बस सुरक्षा व्यवस्था की पोल
राजस्थान के जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर एक निजी एसी स्लीपर बस में हुए भीषण अग्निकांड ने बसों की सुरक्षा मानकों को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह हादसा केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि एक सुनियोजित लापरवाही का परिणाम है। रिपोर्ट के अनुसार, इस हादसे में 21 यात्रियों की जान चली गई और एक दर्जन से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
कैसे हुआ हादसा? यात्रियों के पास नहीं था निकलने का रास्ता
बस में आग लगते ही उसमें मौजूद लोग बाहर निकलने के लिए चीखते-चिल्लाते रहे, लेकिन उनके लिए कोई सुरक्षित रास्ता नहीं था। सामने का गेट लॉक हो गया और पीछे लगा इमरजेंसी गेट भी अवरुद्ध था। खिड़कियों के कांच तोड़कर बाहर कूदने की कोशिशें की गईं, लेकिन आग की तीव्रता इतनी अधिक थी कि अंदर से कोई सुरक्षित बाहर नहीं निकल पाया।
45 मिनट तक नहीं पहुंची फायर ब्रिगेड, स्थानीय लोगों ने संभाली मोर्चा
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि आग लगने के बाद भी फायर ब्रिगेड करीब 45 से 50 मिनट तक मौके पर नहीं पहुंची। इस दौरान स्थानीय ग्रामीण और आर्मी के जवानों ने खुद जेसीबी और पानी के टैंकर की मदद से आग बुझाने की कोशिश की और फंसे लोगों को बाहर निकाला। अगर समय पर फायर ब्रिगेड पहुंच जाती, तो शायद कुछ और जानें बच सकती थीं।
बसों में फायर सेफ्टी का कोई नामोनिशान नहीं
पत्रिका की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश स्लीपर एसी बसों में फायर सेफ्टी के बुनियादी उपकरण तक नहीं लगे होते। न तो अग्निशमन यंत्र मौजूद होते हैं और न ही चालक व स्टाफ को आपातकालीन स्थितियों से निपटने का प्रशिक्षण मिला होता है।
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विशेषज्ञों के अनुसार, हर एसी बस में निम्नलिखित सुरक्षा उपकरण अनिवार्य होने चाहिए:
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अग्निशमन यंत्र (Fire Extinguisher)
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आपातकालीन खिड़कियां और द्वार
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धुआं और तापमान सेंसर
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इमरजेंसी हैमर
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निकासी का स्पष्ट रास्ता
लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है।
बसों की बनावट: जानलेवा डिजाइन और अवैध मॉडिफिकेशन
प्राइवेट बसों में बिना किसी इंजीनियरिंग सर्टिफिकेशन के स्लीपर मॉड्यूल जोड़े जा रहे हैं। बस की गैलरी इतनी संकरी होती है कि एक व्यक्ति का गुजरना भी मुश्किल होता है। इमरजेंसी गेट केवल दिखावे के लिए होता है, जो कई बार अतिरिक्त सीटों से ढका होता है।
शटर, पर्दे और लकड़ी के फर्नीचर से बनी आंतरिक बनावट आग को और भड़काती है। कई बसों में भारी पार्सल और यात्रियों का सामान एक ही डिक्की में रखा जाता है, जिससे आग की स्थिति में विस्फोटक हालात बन सकते हैं।
सरकारी नियंत्रण का अभाव और सिस्टम में गहराता भ्रष्टाचार
नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल का बयान इस ओर इशारा करता है कि निजी बस कंपनियों पर सरकारी नियंत्रण लगभग ना के बराबर है। उन्होंने कहा कि बिना सुरक्षा मानकों के हो रहे कस्टम मॉडिफिकेशन और परमिट विहीन बसें खुलेआम चल रही हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि परिवहन विभाग में भ्रष्टाचार गहराई तक व्याप्त है।
रोडवेज भी नहीं पीछे, फायर सेफ्टी में सरकारी बसें भी फेल
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि सिर्फ निजी बसें ही नहीं, बल्कि राजस्थान रोडवेज की कई बसों में भी फायर सेफ्टी उपकरण मौजूद नहीं थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह समस्या निजी नहीं, बल्कि सिस्टमिक है और पूरे सार्वजनिक परिवहन ढांचे पर सवाल खड़े करती है।
अब क्या ज़रूरी है?
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फायर सेफ्टी ऑडिट: सभी एसी-स्लीपर बसों का अनिवार्य सुरक्षा ऑडिट किया जाए।
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कड़े नियम और लाइसेंसिंग: अवैध मॉडिफिकेशन और बिना फिटनेस सर्टिफिकेट चलने वाली बसों पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए।
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ड्राइवर और स्टाफ का प्रशिक्षण: फायर सेफ्टी और आपातकालीन निकासी पर अनिवार्य ट्रेनिंग दी जाए।
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डिजाइन की मान्यता: केवल BIS (भारतीय मानक ब्यूरो) से अनुमोदित बॉडी डिजाइन की अनुमति दी जाए।