महाराष्ट्र में बड़े आत्मसमर्पण की घटना — नक्सली कमांडर भूपति समेत 61 हुए बेअसर
गढ़चिरौली, महाराष्ट्र | विशेष रिपोर्ट:
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में एक नक्सली नेटवर्क को बड़ा झटका लगा है, जब शीर्ष माओवादी कमांडर मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ भूपति ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की उपस्थिति में औपचारिक आत्मसमर्पण किया। इस आत्मसमर्पण अभियान में कुल 61 नक्सली शामिल रहे।
भूपति पर लगभग ₹6 करोड़ का इनाम था, और वह माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI‑Maoist) के केंद्र समिति व पॉलित ब्यूरो में योगी था।
आत्मसमर्पण की मुख्य बातें और घटनाक्रम
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आत्मसमर्पण सोमवार रात लगभग 10 बजे हुआ, लेकिन औपचारिक कार्यक्रम मंगलवार को गढ़चिरौली पुलिस मुख्यालय में आयोजित किया गया।
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नक्सलियों ने कुल 54 हथियार सौंपे, जिनमें 7 AK-47 और 9 INSAS राइफल शामिल थे।
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आत्मसमर्पण करने वालों में केंद्रीय समिति का एक सदस्य, डिवीज़नल समिति के 10 सदस्य, और DKSZC (डी.के. स्पेशल जोनल कमेटी) से तीन सदस्य शामिल थे।
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भूपति की पत्नी तारक्का (उर्फ विमला सीदम), जो स्वयं माओवादी नेटवर्क की कार्यकर्ता थी, पहले ही आत्मसमर्पण कर चुकी है।
फडणवीस की भूमिका और संदेश
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कार्यक्रम में नक्सलियों को संविधान की प्रति सौंपी और कहा कि यह आत्मसमर्पण “आतंक के युग का अंत” की शुरुआत है।
फडणवीस ने यह आशा व्यक्त की कि महाराष्ट्र के बाद छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी नक्सलवाद समाप्त होगा।
उन्होंने कहा, “गढ़चिरौली को नक्सलमुक्त बनाने का अभियान अब और तेजी से आगे बढ़ेगा।”
भूपति कौन है? – पृष्ठभूमि और सक्रिय भूमिका
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भूपति को नक्सल आंदोलन के रणनीतिकारों में गिना जाता था।
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उन्होंने महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा क्षेत्र में लंबे समय तक प्लाटून अभियानों का संचालन किया।
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वह CPI (Maoist) के संपर्क और संगठन लिंक के लिए जिम्मेदार माना जाता था, विशेषकर जंगल और बाहरी समर्थन नेटवर्क को जोड़ने में।
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विभिन्न राज्यों में उन पर हत्या, सशस्त्र हमले और दंगों जैसे संगीन अपराधों के आरोप थे।
आगे की चुनौतियाँ और रणनीतिक निष्कर्ष
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भूपति के आत्मसमर्पण से माओवादी संगठन की संरचना को गहरा झटका लगा है।
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सुरक्षा एजेंसाएं अब उम्मीद कर रही हैं कि पूछताछ के दौरान इस आत्मसमर्पण से शहरी नक्सलवाद, समर्थक नेटवर्क और फंडिंग चैनल से जुड़े कई राज खुलेंगे।
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यह घटनाक्रम केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की नक्सल विरोधी अभियानों को मजबूती देगा।
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आत्मसमर्पण की यह लहर अन्य नक्सलियों को भी आंदोलित कर सकती है कि वे भी हिंसा छोड़ कर संविधान और विकास की राह अपनाएँ।
भूपति जैसे शीर्ष नेता का आत्मसमर्पण नक्सल आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। इसके प्रभाव की तस्वीर आने वाले दिनों में पूरी तरह सामने आएगी, लेकिन फिलहाल यह साबित कर देता है कि युद्धविरोधी उपाय और सतत दबाव रणनीति सफल हो सकती है।