सीकर (राजस्थान)।
राजस्थान के एक कस्बे में सामने आए कुछ मामलों ने सामाजिक पहचान, धार्मिक सहिष्णुता और संभावित धर्मांतरण को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कुछ इलाकों में हिंदू नाम वाले माता-पिता के बच्चों के नाम मुस्लिम पाए गए हैं — और ये सिर्फ एक-दो नहीं, बल्कि कई उदाहरणों में दोहराया गया पैटर्न नजर आ रहा है।
एक जैसे पैटर्न वाले चार मामले सामने आए
100 मीटर के दायरे में सर्वे के दौरान चार ऐसे परिवार सामने आए, जिनमें बच्चों के नाम उनके माता-पिता की धार्मिक पहचान से पूरी तरह भिन्न थे:
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केस 1: पिता रमेश, मां मैना — बेटी का नाम फरीदा
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केस 2: पिता धर्मेन्द्र, मां काली — बेटी का नाम सनम
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केस 3: पिता विष्णु, मां जाटा देवी — बेटी का नाम सकीना
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केस 4: पिता गोविंदा, पत्नी मुमताज — बेटा इमरान
इन नामों के दस्तावेज भी मौजूद पाए गए, जिससे यह महज रजिस्ट्रेशन की त्रुटि नहीं लगती।
“नाम किसी दाढ़ी वाले ने रखा था”: रमेश का बयान
एक मामले में जब रमेश से बेटी के मुस्लिम नाम पर सवाल किया गया, तो उन्होंने इशारों में बताया कि यह नाम किसी लंबे दाढ़ी वाले व्यक्ति ने रखा था, जो पहले कभी उनके संपर्क में रहा था।
यह इशारा कहीं न कहीं बाहरी प्रभाव या संभावित धार्मिक दखल की ओर इशारा करता है।
एक ही छत के नीचे मंदिर और मस्जिद
इसी इलाके में एक मकान ऐसा भी मिला जिसमें एक ओर छोटा मंदिर और दूसरी ओर हरा झंडा लगा एक मुस्लिम धार्मिक स्थल मौजूद था। पूछताछ में पता चला कि यह मकान एक व्यक्ति ने स्वयं ही तैयार किया है और यहां झाड़-फूंक जैसी गतिविधियां भी होती हैं।
फिल्म और टीवी से प्रेरित नाम रखने का दावा
एक अन्य परिवार में महिला ने बताया कि उन्होंने अपने बच्चों के नाम टीवी सीरियल और फिल्मों से प्रेरित होकर रखे हैं और इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है।
हालांकि जब यह सिलसिला बड़ी संख्या में और एक समुदाय विशेष की ओर झुकाव के साथ सामने आता है, तो सवाल उठना स्वाभाविक है।
शिक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की चिंता
स्थानीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के दस्तावेजों में नाम और पहचान को लेकर विरोधाभास सामने आते हैं। इससे सरकारी योजनाओं में रुकावटें और बच्चों के भविष्य पर संकट की स्थिति बनती है।
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया:
“ऐसे नामों के कारण स्कूलों में दाखिले में भी अड़चन आती है। प्रशासन को जल्द हस्तक्षेप कर स्पष्टता लानी चाहिए।”
निष्कर्ष
यह मसला सिर्फ नामों तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक संरचना, धार्मिक पहचान और सरकारी नीतियों की पारदर्शिता से जुड़ा गंभीर विषय बनता जा रहा है। प्रशासन को सामाजिक निगरानी, दस्तावेजों की जांच और पहचान की स्पष्टता पर तुरंत काम करना होगा, ताकि बच्चों और समाज दोनों का भविष्य सुरक्षित रह सके।
Source: Patrika News