बीकानेर: पीबीएम अस्पताल में ठेकाकर्मी वेतन से वंचित, फर्म पन्नादाय पर गंभीर आरोप
बीकानेर। शहर के सबसे बड़े सरकारी चिकित्सा संस्थान पीबीएम अस्पताल में कार्यरत ठेकाकर्मी पिछले कई महीनों से वेतन न मिलने की समस्या से जूझ रहे हैं। आरोप है कि अस्पताल के विभिन्न विभागों में पन्नादाय फर्म के माध्यम से लगे लगभग 100 से 150 ठेका कर्मचारी महीनों से अपने वेतन का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन न तो ठेकेदार और न ही प्रशासनिक स्तर पर कोई समाधान मिल रहा है।
अस्पताल अधीक्षक से लगाई गुहार, मिला सिर्फ आश्वासन
वेतन से परेशान श्रमिकों का एक प्रतिनिधिमंडल बुधवार को पीबीएम अस्पताल अधीक्षक डॉ. सुरेंद्र वर्मा से मिला। अधीक्षक ने ठेकाकर्मियों को भरोसा दिलाया कि वे इस संबंध में मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को पत्र लिख रहे हैं और शीघ्र ही हल निकलवाने की कोशिश करेंगे।
लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि ये केवल औपचारिकताएं हैं, क्योंकि पहले भी प्राचार्य से मुलाकात की जा चुकी है लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
पन्नादाय फर्म पर आरोप: गरीबों का हक दबाया जा रहा है
ठेकाकर्मियों ने बताया कि वे पन्नादाय नामक निजी फर्म के अंतर्गत अस्पताल के विभिन्न विभागों में सफाई, अटेंडेंट, सहायक जैसे काम कर रहे हैं। फर्म को हर महीने भुगतान किया जाता है, फिर भी कर्मचारियों को महीनों से वेतन नहीं मिला है।
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“हममें से अधिकतर लोग बेहद गरीब तबके से हैं। घर चलाना मुश्किल हो गया है। बच्चों की पढ़ाई, राशन, बिजली के बिल सब अधर में हैं,” – एक महिला कर्मचारी ने भावुक होकर बताया।
ठेकेदार की चुप्पी और प्रशासनिक उदासीनता से नाराजगी
कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि फर्म के संचालक से कई बार संपर्क किया गया, लेकिन हर बार बहानेबाजी की जाती है।
“कभी कहा जाता है कि भुगतान रुका है, कभी फाइल कॉलेज में अटकी है। लेकिन आखिर दोष किसका है और भुगतना हमें ही क्यों पड़ रहा है?” – एक कर्मचारी ने सवाल उठाया।
समाधान की तलाश में अब संभागीय आयुक्त से मिलेंगे
लगातार प्राचार्य और अधीक्षक स्तर पर असफल प्रयासों के बाद ठेकाकर्मी अब संभागीय आयुक्त से मुलाकात कर अपनी शिकायत दर्ज कराने की तैयारी में हैं। वे मांग कर रहे हैं कि:
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फर्म के खिलाफ जांच शुरू की जाए
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कर्मचारियों को बकाया वेतन तत्काल दिलाया जाए
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भविष्य में भुगतान की निगरानी सुनिश्चित हो
मानवीय संकट में घिरे सैकड़ों परिवार
यह सिर्फ वेतन का मामला नहीं, बल्कि सैकड़ों परिवारों की आजीविका से जुड़ा गंभीर मुद्दा बन चुका है। कई कर्मचारियों ने बताया कि बच्चों की फीस भरने तक के पैसे नहीं हैं, और कुछ तो कर्ज लेकर घर चला रहे हैं।
यह सवाल उठना लाज़मी है कि सरकारी अस्पताल जैसी संवेदनशील संस्था में काम करने वाले गरीब कर्मचारियों को आखिर कब तक दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी।


