GST कटौती का लाभ जनता तक पहुंचे, ई-कॉमर्स कंपनियों पर सरकार की सख्त नजर
नई दिल्ली, 30 सितंबर 2025:
सरकार अब यह सुनिश्चित करने के लिए ई-कॉमर्स कंपनियों की कड़ी निगरानी कर रही है कि जीएसटी दरों में की गई कटौती का वास्तविक लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचे। दैनिक उपभोग की वस्तुओं, जैसे शैम्पू, दालें, मक्खन, टूथपेस्ट आदि की कीमतों में कमी के बावजूद कुछ प्लेटफॉर्म्स पर कीमतों में पर्याप्त कमी न होने की शिकायतें सामने आई हैं।
वित्त मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार, राजस्व विभाग मूल्य निर्धारण मानदंडों के अनुपालन की जांच कर रहा है और यह देख रहा है कि कर कटौती के बाद एमआरपी में उचित बदलाव किया गया है या नहीं।
क्यों हो रही है निगरानी?
हाल ही में लागू हुए GST स्लैब में बदलाव के तहत 5%, 12%, 18% और 28% के पूर्व टैक्स स्ट्रक्चर को अब केवल 5% और 18% के दो टैक्स स्लैब में समाहित कर दिया गया है। यह बदलाव 22 सितंबर 2025 से प्रभावी हुआ है। सरकार का दावा है कि इससे 99% उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें घटनी चाहिए।
हालांकि, कई ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर अभी भी पुरानी दरों पर ही वस्तुएं बेची जा रही हैं, जिससे उपभोक्ता को जीएसटी कटौती का सीधा लाभ नहीं मिल पा रहा है।
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तकनीकी गड़बड़ियों का हवाला
जब अधिकारियों ने कुछ ऑनलाइन रिटेलर्स से इस पर जवाब मांगा, तो उन्होंने ‘तकनीकी गड़बड़ियों’ का हवाला दिया। लेकिन सरकार ने इन स्पष्टीकरणों को अपर्याप्त मानते हुए अघोषित रूप से फटकार भी लगाई है।
सूत्रों के अनुसार, “सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि टैक्स में की गई राहत कृत्रिम रूप से मुनाफाखोरी में न बदल जाए। इसलिए ई-कॉमर्स कंपनियों को भी समान स्तर पर जवाबदेह बनाया जा रहा है।”
54 वस्तुओं की हो रही निगरानी
वित्त मंत्रालय ने 9 सितंबर को सीबीआईसी और सीजीएसटी के सभी क्षेत्रीय कार्यालयों को पत्र लिखकर 54 आम उपभोग की वस्तुओं की ब्रांडवार मासिक मूल्य रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। इसमें निम्न वस्तुएं शामिल हैं:
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मक्खन
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शैम्पू
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टूथपेस्ट
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टोमैटो केचप
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आइसक्रीम
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एसी और टीवी
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थर्मामीटर
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डायग्नोस्टिक किट
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ग्लूकोमीटर
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सीमेंट
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पट्टियां और क्रेयॉन आदि
ये रिपोर्ट एमआरपी में बदलाव के तुलनात्मक विश्लेषण के साथ तैयार की जा रही है और इसकी पहली रिपोर्ट 30 सितंबर तक सीबीआईसी को सौंपी जानी है।
उपभोक्ताओं के हित में बड़ा कदम
सरकार का यह कदम कर छूट को केवल कागजों में न रहने देने की दिशा में प्रभावी प्रयास है। यदि ई-कॉमर्स कंपनियां टैक्स कटौती के बावजूद एमआरपी नहीं घटाती हैं, तो यह अवैध मुनाफाखोरी की श्रेणी में आ सकता है, जिसके लिए कानूनी कार्रवाई भी संभव है।


