कर्नाटक में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। कोलार जिले की मालूर विधानसभा सीट से 2023 में जीत दर्ज करने वाले कांग्रेस विधायक केवाई नानजेगौड़ा की विधायकी कर्नाटक हाईकोर्ट ने रद्द कर दी है। यह फैसला उस याचिका पर आया है जो बीजेपी प्रत्याशी केएस मंजूनाथ गौड़ा ने दाखिल की थी। अदालत ने चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी का हवाला देते हुए निर्वाचन रद्द किया और दोबारा मतगणना कराने के निर्देश दिए हैं।
248 वोटों से जीते थे नानजेगौड़ा, अब सीट पर फिर मंथन
विधानसभा चुनाव 2023 में केवाई नानजेगौड़ा ने बीजेपी उम्मीदवार को केवल 248 वोटों से हराकर मालूर सीट पर जीत हासिल की थी। इस बेहद मामूली अंतर के चलते बीजेपी उम्मीदवार ने नतीजों को अदालत में चुनौती दी थी। उन्होंने आरोप लगाया कि मतगणना प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी और परिणाम में अनियमितता हुई।
मतगणना की वीडियो रिकॉर्डिंग पेश नहीं कर पाया प्रशासन
हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि निर्वाचन अधिकारी मतगणना की वीडियो रिकॉर्डिंग प्रस्तुत करने में असफल रहे, जबकि यह एक आवश्यक सबूत था। इसके आधार पर कोर्ट ने निर्वाचन को अवैध करार देते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं कि चार हफ्तों के भीतर दोबारा मतगणना करवा कर नया परिणाम घोषित किया जाए।
30 दिन का समय, कांग्रेस जा सकती है सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने कांग्रेस विधायक को राहत देते हुए आदेश को 30 दिनों के लिए स्थगित कर दिया है, ताकि वे इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकें। कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि वे इस आदेश को चुनौती देंगे और नानजेगौड़ा के लिए न्याय की मांग करेंगे।
- Advertisement -
राजनीतिक गलियारों में तेज हुई हलचल
इस फैसले के बाद कर्नाटक में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। बीजेपी इसे अपनी कानूनी जीत बता रही है, जबकि कांग्रेस इसे एक राजनीतिक साजिश मान रही है। यह मामला ऐसे समय सामने आया है जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी देशभर में ‘वोट चोरी’ के आरोप लगाकर बीजेपी पर हमला बोल रहे हैं।
राहुल गांधी भी उठा चुके हैं वोट चोरी का मुद्दा
राहुल गांधी हाल ही में लोकसभा चुनाव 2024 और महाराष्ट्र विधानसभा में मतदाता धोखाधड़ी के आरोप लगा चुके हैं। उन्होंने अपने एक प्रेजेंटेशन में बेंगलुरु की महादेवपुरा सीट का उदाहरण देते हुए कहा था कि कांग्रेस को वहां हराया गया, जबकि उन्हें जीतने की पूरी उम्मीद थी।
निष्कर्ष: चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल
मालूर सीट का यह मामला चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और ईवीएम से जुड़े विवादों को फिर से उजागर करता है। हाईकोर्ट के फैसले से यह साफ हो गया है कि तकनीकी खामियों और प्रक्रिया में लापरवाही का असर लोकतंत्र की बुनियाद पर पड़ सकता है।