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बीकानेर

राजस्थान विधायक खरीद-फरोख्त मामला झूठा, हाईकोर्ट ने बंद किया पांच साल पुराना केस

editor
editor Published September 16, 2025
Last updated: 2025/09/16 at 6:08 PM
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राजस्थान की राजनीति में बड़ा मोड़: हाईकोर्ट ने विधायक खरीद-फरोख्त मामला किया बंद, सचिन पायलट समेत सभी को मिली राहत

Contents
क्या था पूरा मामला?किनके खिलाफ दर्ज हुआ था केस?जांच में क्या निकला सामने?हाईकोर्ट का फैसला क्यों है अहम?आरोपियों का पक्ष: राजनीतिक साजिश थी पूरा मामलासियासी प्रतिक्रियाएं:✔️ सचिन पायलट✔️ भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़✔️ भजनलाल सरकार के मंत्री सुरेश रावतक्या है इसका राजनीतिक प्रभाव?

जयपुर। राजस्थान की राजनीति में साल 2020 के दौरान हुई हलचल ने अब न्यायिक स्तर पर बड़ा मोड़ ले लिया है। राजस्थान हाईकोर्ट ने बहुचर्चित विधायक खरीद-फरोख्त मामले को खारिज करते हुए इसे ‘अपराध रहित’ करार दिया है। कोर्ट ने एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए इस पांच साल पुराने केस को औपचारिक रूप से बंद करने का आदेश दिया है।


क्या था पूरा मामला?

यह विवाद जुलाई 2020 में सामने आया, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच सत्ता संघर्ष अपने चरम पर था। गहलोत खेमे ने पायलट और उनके सहयोगी विधायकों पर सरकार गिराने की साजिश और विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगाए थे।

इस आरोप के आधार पर पहले SOG (स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप) और फिर ACB ने जांच शुरू की। दावा किया गया कि भाजपा की मदद से कुछ कारोबारी और राजनीतिक चेहरे निर्दलीय विधायकों को पैसे का लालच देकर सरकार को गिराने की कोशिश कर रहे थे।

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किनके खिलाफ दर्ज हुआ था केस?

मामले में भरत मालानी (उदयपुर), अशोक सिंह (ब्यावर), करण सिंह और अनिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। बाद में सचिन पायलट का नाम भी इसमें जोड़ा गया। आरोप था कि इन्होंने निर्दलीय विधायक रमीला खड़िया और अन्य को लालच देकर अपने पक्ष में करने की कोशिश की।


जांच में क्या निकला सामने?

एसीबी की जांच मुख्यतः फोन रिकॉर्डिंग पर आधारित थी, जिसमें कथित साजिश की बात कही गई। लेकिन कोर्ट में पेश की गई फाइनल रिपोर्ट (FR) में कहा गया कि:

  • कॉल रिकॉर्डिंग में केवल सामान्य बातचीत पाई गई।

  • कोई ठोस सबूत, पैसे के लेन-देन या धमकी का प्रमाण नहीं मिला।

  • कॉल्स में कोरोना, आईपीएल और राजनीतिक माहौल की चर्चा थी, न कि खरीद-फरोख्त की।

इन्हीं तथ्यों के आधार पर ACB ने केस को बंद करने की सिफारिश की।


हाईकोर्ट का फैसला क्यों है अहम?

जस्टिस आशुतोष कुमार की बेंच ने कहा कि जब जांच एजेंसी ने खुद किसी अपराध के प्रमाण नहीं पाए, तो एफआईआर का औचित्य नहीं बनता। इसलिए प्रकरण को समाप्त किया जा रहा है। इस फैसले से भरत मालानी, अशोक सिंह और अन्य आरोपियों को कानूनी रूप से क्लीन चिट मिल गई है।


आरोपियों का पक्ष: राजनीतिक साजिश थी पूरा मामला

याचिकाकर्ता पक्ष के वरिष्ठ वकील वीआर बाजवा और पंकज गुप्ता ने कोर्ट में दलील दी कि:

  • यह मामला पूरी तरह राजनीतिक द्वेष पर आधारित था।

  • गहलोत सरकार ने अपनी आंतरिक कलह छिपाने के लिए फर्जी मामला दर्ज कराया।

  • फोन कॉल्स में केवल व्यक्तिगत गपशप थी, जो आपराधिक साजिश नहीं मानी जा सकती।


सियासी प्रतिक्रियाएं:

✔️ सचिन पायलट

“मैंने अभी पूरी रिपोर्ट नहीं देखी, लेकिन अगर कोर्ट ने क्लीन चिट दी है तो कुछ कहने को नहीं बचा। न्यायपालिका में पूरा भरोसा है।”

✔️ भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़

“कांग्रेस ने खुद की अंतर्कलह छिपाने के लिए झूठे केस दर्ज करवाए थे। अब सच्चाई सामने आ गई है।”

✔️ भजनलाल सरकार के मंत्री सुरेश रावत

“यह ड्रामा था, जिसमें सरकार ने जनता को छोड़कर होटल में समय बिताया। कांग्रेस की आदत है दूसरों पर दोष मढ़ने की।”


क्या है इसका राजनीतिक प्रभाव?

इस फैसले ने एक बार फिर राजस्थान की कांग्रेस राजनीति में सचिन पायलट की स्थिति को मजबूत किया है। वहीं, कांग्रेस नेतृत्व पर सत्ता बचाने के लिए सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप भी गहरा हो गया है।

भाजपा इस पूरे घटनाक्रम को 2028 विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है।


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editor September 16, 2025
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