वंतारा में हाथियों की अवैध कैद के आरोपों को SIT ने किया खारिज, सुप्रीम कोर्ट में पेश हुई रिपोर्ट
जामनगर (गुजरात): रिलायंस फाउंडेशन के वंतारा वाइल्डलाइफ प्रोजेक्ट पर हाथियों की कथित अवैध कैद और खरीद-फरोख्त को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद पर अब एक अहम मोड़ आ गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित विशेष जांच टीम (SIT) ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है, जिसमें वंतारा पर लगाए गए तमाम आरोपों को निराधार बताया गया है। जांच में यह साफ हुआ है कि वंतारा में हाथियों या किसी अन्य वन्यजीव को गैरकानूनी तरीके से नहीं रखा गया है।
SIT ने किए सभी आरोपों की गहराई से जांच
25 अगस्त को हुई पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ — न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति प्रसन्न बी. वराले — ने वंतारा मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र SIT गठित करने का आदेश दिया था। इस टीम का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर ने किया। टीम में पूर्व उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राघवेंद्र सिंह चौहान, मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त हेमंत नागराले और वरिष्ठ IRS अधिकारी अनीश गुप्ता शामिल थे।
टीम ने भारत और विदेशों से लाए गए जानवरों की खरीद-फरोख्त, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुपालन, CITES (लुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर अंतरराष्ट्रीय समझौते) के प्रावधानों, पशु कल्याण मानकों, कार्बन और जल क्रेडिट के दुरुपयोग के आरोप, और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मामलों की जांच की।
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वंतारा ने सभी कानूनी मानदंडों का किया पालन: रिपोर्ट
12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए रिपोर्ट में SIT ने कहा है कि वंतारा वाइल्डलाइफ फैसिलिटी ने सभी आवश्यक कानूनों और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पूर्ण पालन किया है। जस्टिस चेलमेश्वर ने कोर्ट में बताया कि जांच के दौरान वंतारा के खिलाफ किसी भी प्रकार की अवैध गतिविधि या नियम उल्लंघन का प्रमाण नहीं मिला। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जानवरों की देखरेख, चिकित्सा व्यवस्था और उनके रहन-सहन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट को लिया रिकॉर्ड पर, जल्द आ सकता है अंतिम फैसला
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि SIT की रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर ले लिया गया है और इसे जनहित याचिका में लगाए गए आरोपों के निष्पक्ष मूल्यांकन का हिस्सा माना जाएगा। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि जांच का उद्देश्य केवल तथ्यों की जांच था, न कि किसी संस्था या व्यक्ति को दोषी ठहराना।
अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय जल्द सुनाए जाने की उम्मीद है।