बीकानेर में इस बार नए मंच से होगी रामलीला की शुरुआत, कलाकारों में दिखा गजब का उत्साह
बीकानेर | इस वर्ष नवरात्रि पर्व के उपलक्ष्य में नेताजी सुभाष कला मंडल के तत्वावधान में रामलीला महोत्सव का आयोजन एक नए और आकर्षक स्थल पर किया जा रहा है।
22 सितंबर 2025 से शुरू हो रही इस रामलीला का मंचन लालगढ़ रेलवे स्टेशन मेन गेट के सामने स्थित सुभाषपुरा पार्क (एफसीआई गोदाम के पास) में होगा। आयोजन को यादगार बनाने के लिए तैयारियां जोरों पर हैं और कलाकारों में उत्साह देखते ही बन रहा है।
रामलीला में नजर आएगा पारंपरिक रंग, आकर्षक मंच और दमदार अभिनय
रामलीला की तैयारी में लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, खर-दूषण का वध, सूर्पणखा और महादेव जैसे दृश्यों की लगातार रिहर्सल की जा रही है। मंचन को ऐतिहासिक और प्रभावशाली बनाने के लिए किरदारों की पोशाक, श्रृंगार और मंच की साज-सज्जा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
नेताजी सुभाष कला मंडल के अध्यक्ष डी.के. बोबरवाल ने बताया कि इस बार की रामलीला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक गौरव और अभिनय प्रतिभा का संगम होगी। उन्होंने कहा कि कलाकार समर्पण और अनुशासन के साथ लगातार अभ्यास में जुटे हैं ताकि हर दृश्य दर्शकों के मन में अमिट छाप छोड़ सके।
- Advertisement -
आयोजन समिति में हर स्तर पर दिख रही सक्रियता
इस रामलीला आयोजन में नेताजी सुभाष कला मंडल की पूरी टीम ने समर्पित भूमिका निभाई है। अध्यक्ष डी.के. बोबरवाल, उपाध्यक्ष राहुल साड़ीवाल, सचिव जगदीश शर्मा, डारेक्टर मोसिन खान, सह-डारेक्टर एडवोकेट सुरेश कुमार बलेचा, कोषाध्यक्ष संजीव पराशर, सह-कोषाध्यक्ष अमित सिंह, सह-सचिव हितेशवर सिंह राठौड़ समेत कई वरिष्ठ और युवा कलाकार मंचन की सफलता के लिए निरंतर सक्रिय हैं।
वरिष्ठ कलाकारों में शंकर सिंह, ओम चौधरी, विजय सैन, हरिकिशन, नंदू, प्रेम नाथ, अमन सिंह, तरुण, घनश्याम, बालकिशन, रामु, राजेश कोटिया, भरत, आकाश तिवाड़ी, अमित साड़ीवाल, वेदांत तिवाड़ी, विराट तिवाड़ी, उदयवीर सिंह चौहान और जतिन जैसे नाम प्रमुख हैं, जो अपने-अपने किरदारों को जीवंत बनाने में जुटे हैं।
बीकानेरवासियों से अपील: धर्म और संस्कृति के पर्व में बनें सहभागी
आयोजन समिति ने बीकानेरवासियों से निवेदन किया है कि वे अपने परिवार सहित रामलीला स्थल पर पहुंचकर इस धर्म और संस्कृति से जुड़ी परंपरा का हिस्सा बनें। आयोजकों का उद्देश्य केवल रामायण के दृश्यों का मंचन नहीं, बल्कि नई पीढ़ी में सांस्कृतिक मूल्यों का रोपण और धर्म के प्रति आस्था को सुदृढ़ करना है।