एससीओ समिट के तुरंत बाद पुतिन का बड़ा बयान, बोले- भारत और चीन के साथ भाषा का लिहाज रखें
नई दिल्ली/मॉस्को। शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिकी नेतृत्व को कड़ा संदेश देते हुए डोनाल्ड ट्रंप की भारत-चीन नीति पर तीखी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि अमेरिका अब भी औपनिवेशिक युग की मानसिकता में जी रहा है, लेकिन आज के वैश्विक परिदृश्य में भारत और चीन जैसे शक्तिशाली देशों पर टैरिफ और दबाव की रणनीति नहीं चलेगी।
पुतिन ने अमेरिका को साफ शब्दों में चेताया कि अगर वह अपने साझेदारों से बात करने का तरीका नहीं बदलता, तो उसका राजनीतिक भविष्य गंभीर संकट में पड़ सकता है।
SCO समिट में मोदी और जिनपिंग से मुलाकात के बाद पुतिन का कड़ा संदेश
चीन में आयोजित हालिया SCO सम्मेलन में भाग लेकर लौटने के बाद पुतिन ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा,
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“अमेरिका को यह समझना होगा कि आज का विश्व बहुध्रुवीय है। भारत और चीन को धमकाने की पुरानी नीति अब काम नहीं करेगी।”
उन्होंने कहा कि अमेरिका को अपने सहयोगियों से संवाद का तरीका सीखना चाहिए, क्योंकि आज के दौर में सहानुभूति, समता और सम्मान आधारित कूटनीति की आवश्यकता है।
टैरिफ और प्रतिबंधों की नीति को बताया औपनिवेशिक सोच
राष्ट्रपति पुतिन ने ट्रंप प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह आर्थिक दबाव और टैरिफ के माध्यम से भारत और चीन जैसे देशों को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा,
“आप ऐसे देशों को दबा नहीं सकते, जिनके पास मजबूत अर्थव्यवस्था, अरबों की आबादी और स्वतंत्र नीतिगत ढांचा है।”
पुतिन ने कहा कि भारत और चीन वैश्विक शक्ति के केंद्र हैं और इनपर दवाब बनाने की कोई भी रणनीति उल्टी पड़ सकती है।
‘जो झुकेगा, उसका राजनीतिक करियर खत्म’
रूस के राष्ट्रपति ने अपने बयान में यह भी कहा कि भारत और चीन जैसे देश यदि अमेरिका के दबाव में झुकते हैं, तो उनके नेताओं का राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ सकता है।
“इतिहास गवाह है कि जो नेता विदेशी दबाव में झुकते हैं, वे लंबे समय तक जनता का विश्वास नहीं कायम रख सकते।”
उन्होंने भरोसा जताया कि समय के साथ वैश्विक तनाव कम होंगे और सभी देशों के बीच स्वाभाविक और सम्मानजनक राजनीतिक संवाद बहाल होगा।
भारत और चीन को लेकर अमेरिका की रणनीति पर वैश्विक नजर
पुतिन का यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका ने हाल ही में भारत और चीन दोनों के खिलाफ ट्रेड टैरिफ और टेक्नोलॉजी एक्सेस को लेकर सख्ती दिखाई है। इसके जवाब में रूस ने साफ किया है कि वह एशियाई साझेदारों के साथ खड़ा है और हर प्रकार के “दबाव की राजनीति” का विरोध करता रहेगा।