ममता बनर्जी का आरोप: सेना ने बीजेपी के दबाव में हटाया टीएमसी का मंच, अपील में कहा- तटस्थ रहें
कोलकाता | 1 सितंबर 2025
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर केंद्र सरकार और बीजेपी पर तीखा हमला बोला है। इस बार मामला तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उस मंच से जुड़ा है, जो कोलकाता में प्रवासी बंगालियों के “उत्पीड़न” के खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शन के लिए तैयार किया गया था। ममता ने आरोप लगाया कि सेना ने इस मंच को गिरा दिया, और यह सब केंद्र के इशारे पर हुआ।
सेना की कार्रवाई पर ममता ने क्या कहा?
सीएम ममता बनर्जी ने कहा,
“मैं सेना को दोष नहीं देती, लेकिन उनसे अपील करती हूं कि वे तटस्थ रहें और बीजेपी के हाथों में न खेलें। यह घटना न केवल अलोकतांत्रिक है, बल्कि नैतिक मूल्यों के भी खिलाफ है।”
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उन्होंने सवाल उठाया कि सेना ने कोलकाता पुलिस या स्थानीय प्रशासन से परामर्श क्यों नहीं किया, जबकि यह मंच सार्वजनिक विरोध के लिए तैयार किया गया था।
बीजेपी पर ‘प्रतिशोध की राजनीति’ का आरोप
मुख्यमंत्री ने दावा किया कि मंच को हटवाने के पीछे बीजेपी की प्रतिशोध की राजनीति है।
उन्होंने कहा,
“हम प्रवासी बंगालियों के उत्पीड़न के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन की तैयारी कर रहे थे, लेकिन बीजेपी ने लोकतांत्रिक आवाज को दबाने के लिए सेना का सहारा लिया।”
टीएमसी का दावा: सेना भी राजनीति का हथियार बन रही
टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने केंद्र सरकार पर हमला करते हुए कहा कि अब ईडी और सीबीआई के बाद सेना को भी विरोध दबाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि अब यह विरोध प्रदर्शन रानी रश्मोनी रोड पर किया जाएगा।
सेना की सफाई: नियमों का उल्लंघन हुआ
इस पूरे घटनाक्रम पर सेना की ओर से भी प्रतिक्रिया सामने आई है। एक रक्षा अधिकारी ने बताया कि
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मैदान क्षेत्र सेना के नियंत्रण में आता है।
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कार्यक्रमों की अनुमति सिर्फ दो दिन के लिए दी जाती है।
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अगर आयोजन इससे अधिक समय के लिए हो, तो रक्षा मंत्रालय से विशेष अनुमति लेनी होती है।
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टीएमसी द्वारा बनाया गया मंच करीब एक महीने से लगातार लगा हुआ था।
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आयोजकों को कई बार हटाने के लिए नोटिस दिया गया, लेकिन मंच नहीं हटाया गया।
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अंततः नियमानुसार कार्रवाई की गई और इस दौरान कोलकाता पुलिस की उपस्थिति में ढांचा हटाया गया।
राजनीतिक घमासान तेज
टीएमसी और बीजेपी के बीच यह नया विवाद एक बार फिर केंद्र बनाम राज्य के रिश्तों को गर्मा गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता बनर्जी इस मुद्दे को लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के रूप में जनता के सामने रखने की कोशिश कर रही हैं, जबकि केंद्र इसे नियमों के उल्लंघन से जुड़ा मामला बता रहा है।