नई दिल्ली — राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के तीसरे दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई संवेदनशील और सामयिक मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी। कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली के विज्ञान भवन में किया गया, जहां भागवत ने सवाल-जवाब के सत्र में भाजपा अध्यक्ष के चयन, संघ-सरकार के रिश्ते, संस्कृति-संस्कार, संस्कृत की भूमिका, जनसंख्या नीति और देश के विभाजन जैसे विषयों पर अपने विचार साझा किए।
“भाजपा अध्यक्ष का फैसला हम नहीं करते”
एक सवाल के जवाब में कि क्या आरएसएस भाजपा अध्यक्ष चुनने में भूमिका निभाता है, भागवत ने स्पष्ट किया कि,
“अगर हमें निर्णय करना होता, तो इतना समय क्यों लगता? हम शाखा चलाने में माहिर हैं, भाजपा सरकार चलाने में। हम एक-दूसरे को सुझाव दे सकते हैं, निर्णय नहीं करते।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ सत्ता संचालन में हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि मूल्य आधारित सुझाव देता है।
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भाजपा से मतभेद नहीं, मनभेद कभी नहीं
संघ और भाजपा के बीच मतभेद की खबरों पर प्रतिक्रिया देते हुए भागवत ने कहा,
“हमारे विचारों में मतभेद हो सकता है, लेकिन मनभेद नहीं। हम एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं। भाजपा सरकार में सब कुछ संघ तय करता है, यह धारणा पूरी तरह गलत है।”
उन्होंने यह भी कहा कि संघ का लक्ष्य सिर्फ एक है—राष्ट्र की भलाई।
अन्य राजनीतिक दलों को समर्थन क्यों नहीं?
जब पूछा गया कि संघ केवल भाजपा को ही समर्थन क्यों देता है, तो भागवत ने कहा,
“जो संगठन अच्छे कामों के लिए सहयोग मांगते हैं, हम उन्हें मदद देते हैं। लेकिन जो खुद दूरी बना लेते हैं, उनके लिए हम कुछ नहीं कर सकते। हमारा दरवाज़ा सबके लिए खुला है।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ केवल विचारधारा नहीं, संपूर्ण समाज के लिए कार्य करता है।
संस्कार और तकनीक का संतुलन ज़रूरी
तकनीक और आधुनिकीकरण के दौर में संस्कारों की भूमिका पर भागवत ने कहा,
“शिक्षा केवल जानकारी नहीं है, वह मनुष्य को सुसंस्कृत बनाती है। तकनीक का मालिक मनुष्य होना चाहिए, तकनीक हमारा मालिक न बने।”
उन्होंने नई शिक्षा नीति की ‘पंचकोशीय शिक्षा प्रणाली’ की सराहना की और कहा कि यह संतुलन बनाती है।
संस्कृत का ज्ञान ज़रूरी, पर अनिवार्य नहीं
संस्कृत को अनिवार्य करने के सवाल पर संघ प्रमुख ने कहा,
“संस्कृत भारत की आत्मा है। इसे अनिवार्य बनाने की जगह, लोगों में इसे जानने की ललक जगानी चाहिए।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि संस्कृत भारत को समझने का माध्यम है, इसलिए इसका बुनियादी ज्ञान आवश्यक है।
हर परिवार में तीन संतान हों: भागवत
जनसंख्या नीति पर बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा कि
“केवल संख्या नहीं, इरादा ज़रूरी है। भारत की नीति 2.1 जन्म दर की बात करती है, यानी औसतन तीन संतान। जो समाज जन्म दर तीन से नीचे जाता है, वह धीरे-धीरे विलुप्त हो जाता है।”
उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि विवाह में देरी और एक-दो संतान की प्रवृत्ति स्वास्थ्य और समाज दोनों के लिए हानिकारक हो सकती है।
देश के विभाजन पर संघ की स्थिति
जब सवाल उठा कि विभाजन के समय संघ ने विरोध क्यों नहीं किया, तो भागवत ने कहा,
“यह गलत धारणा है। संघ ने विभाजन का विरोध किया था, लेकिन उस समय संघ के पास उतनी ताकत नहीं थी।”
उन्होंने कहा कि अखंड भारत संघ का विचार है और शेषाद्रि की पुस्तक ‘Tragic Story of Partition’ को पढ़ने की सलाह दी, ताकि संघ की ऐतिहासिक भूमिका को सही तरीके से समझा जा सके।