सुप्रीम कोर्ट ने वंतारा प्रोजेक्ट पर कसी निगरानी, पूर्व न्यायाधीश के नेतृत्व में SIT गठित
देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी और उनके परिवार द्वारा संचालित रिलायंस फाउंडेशन के वंतारा प्रोजेक्ट की अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में गहन जांच होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस परियोजना से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है। इस SIT का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस जे. चेलमेश्वर करेंगे।
SIT में शामिल होंगे ये वरिष्ठ सदस्य
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर के अलावा इस जांच समिति में उत्तराखंड और तेलंगाना हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान, मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त हेमंत नागराले, और वरिष्ठ विशेषज्ञ अनीश गुप्ता को भी शामिल किया गया है। यह टीम न केवल पशु कल्याण से जुड़े मामलों की जांच करेगी, बल्कि परियोजना से संबंधित सभी कानूनी, पर्यावरणीय और वित्तीय मुद्दों का गहराई से मूल्यांकन करेगी।
जांच के दायरे में ये प्रमुख बिंदु होंगे
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT को निम्नलिखित पहलुओं की जांच का जिम्मा सौंपा गया है:
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वंतारा में लाए गए पशुओं का अधिग्रहण और उनकी उत्पत्ति
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पर्यावरण संरक्षण कानूनों और अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन
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वन्यजीवों की देखरेख, संरक्षण और उनके लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग
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किसी भी संभावित वन्यजीव व्यापार या अनियमित गतिविधि की जांच
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परियोजना की वित्तीय पारदर्शिता और नियामक अनुपालन
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अन्य संबंधित मुद्दे जो सार्वजनिक हित को प्रभावित करते हैं
जांच की प्रक्रिया और रिपोर्टिंग की समयसीमा
SIT को यह अधिकार प्राप्त होगा कि वह सरकारी एजेंसियों, संबंधित प्राधिकरणों, हस्तक्षेपकर्ताओं, पत्रकारों और अन्य संभावित स्रोतों से सूचना एकत्र कर सके। जांच टीम यदि आवश्यक समझे, तो अपने जांच क्षेत्र का विस्तार भी कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि SIT को 12 सितंबर 2025 तक अपनी विस्तृत और तथ्यात्मक रिपोर्ट न्यायालय को सौंपनी होगी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले शामिल थे, ने कहा कि याचिका में लगाए गए आरोपों के साथ पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए हैं। आमतौर पर ऐसी याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाता, लेकिन चूंकि इसमें ऐसे आरोप हैं कि वैधानिक संस्थाएं या अदालतें अपने आदेशों का पालन नहीं कर पा रही हैं, इसलिए न्याय की दृष्टि से स्वतंत्र जांच आवश्यक है।