उदयपुर: मतदाता सूची में 700 नामों की शिकायत निकली भ्रामक, सभी सूचीबद्ध थे नोशनल नंबर से
उदयपुर जिले के गोगुंदा विधानसभा क्षेत्र में एक ही मकान नंबर पर 700 मतदाताओं के नाम दर्ज होने की शिकायत को लेकर प्रशासन हरकत में आया। हालांकि, प्रारंभिक जांच में यह आरोप तथ्यात्मक रूप से भ्रामक पाया गया। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि सभी नाम चुनाव आयोग की “नोशनल नंबर” प्रणाली के तहत वैध रूप से जोड़े गए थे।
शिकायत में कहा गया था कि बड़गांव क्षेत्र में एक ही मकान में सैकड़ों मतदाताओं के नाम दर्ज हैं, जिससे फर्जीवाड़े का संदेह उत्पन्न हुआ। जिला कलेक्टर नमित मेहता को जनसुनवाई के दौरान मिली शिकायत पर उन्होंने गोगुंदा के उपखंड अधिकारी व ईआरओ (Electoral Registration Officer) को तत्काल जांच के निर्देश दिए।
जांच में निकली सच्चाई
ईआरओ स्तर की जांच में सामने आया कि ये सभी मतदाता उदयपुर विकास प्राधिकरण (UDA) की जमीन पर अवैध रूप से बसे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से संबंधित हैं। इनके पास कोई वैध पता या मकान नंबर नहीं था, जिसके चलते चुनाव आयोग द्वारा इन्हें काल्पनिक (नोशनल) नंबर देकर सूची में शामिल किया गया।
क्या होता है नोशनल नंबर?
जब किसी व्यक्ति का वैध पता, मकान नंबर या अन्य पते से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं होते, तो चुनाव आयोग उस मतदाता को वंचित न रखते हुए अस्थायी नंबर (नोशनल नंबर) के जरिए मतदाता सूची में शामिल करता है। यह व्यवस्था विशेष रूप से उन लोगों के लिए बनाई गई है जो झुग्गियों या अस्थायी आवासों में रहते हैं।
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फर्जीवाड़े का आरोप निराधार
जिला कलेक्टर ने स्पष्ट किया कि कोई भी फर्जी या बोगस नाम दर्ज नहीं किया गया है। सभी नाम वास्तविक नागरिकों के हैं, जो कि सिर्फ स्थायी पते के अभाव में नोशनल नंबर से सूचीबद्ध किए गए थे। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हर नागरिक को मतदान का अधिकार मिलना जरूरी है, भले ही उसके पास वैध पता न हो।
फिर भी प्रशासन द्वारा अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए विस्तृत जांच करवाई जा रही है, ताकि पूरी पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
विशेषज्ञों की राय
शहरी क्षेत्रों में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण कर बसे परिवारों को स्थायी पते देने की व्यवस्था जब तक नहीं होती, तब तक नोशनल नंबर प्रणाली ही व्यावहारिक समाधान मानी जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम वंचित वर्ग को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जोड़ने की दिशा में जरूरी है।