नई दिल्ली – भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सीपी राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। यह फैसला रविवार को भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में लिया गया। राधाकृष्णन की उम्मीदवारी न केवल भाजपा की रणनीतिक दिशा में बदलाव को दर्शाती है, बल्कि इससे पार्टी की दक्षिण भारत और ओबीसी वर्ग को साधने की मंशा भी झलकती है।
धनखड़ की जगह राधाकृष्णन: रणनीति में 180 डिग्री का बदलाव
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की तुलना में सीपी राधाकृष्णन की राजनीतिक शैली शांत, संयमित और समावेशी मानी जाती है। धनखड़ जहां एक मुखर, आक्रामक और कानूनी पृष्ठभूमि वाले नेता रहे हैं, वहीं राधाकृष्णन को संघ की पृष्ठभूमि वाला अनुशासित, सौम्य और विचारधारा-निष्ठ नेता माना जाता है।
2022 में जब जगदीप धनखड़ को एनडीए का उम्मीदवार बनाया गया था, तो यह कदम जाट समुदाय को साधने और विपक्ष को कड़ा संदेश देने के लिए उठाया गया था। धनखड़ का राजनीतिक सफर कांग्रेस से शुरू हुआ था और वे संघ विचारधारा से सीधे तौर पर नहीं जुड़े थे। वहीं, सीपी राधाकृष्णन किशोरावस्था से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं।
दक्षिण भारत को साधने की कोशिश
सीपी राधाकृष्णन का ताल्लुक तमिलनाडु से है और वे ओबीसी समुदाय से आते हैं। भाजपा के लिए यह दोहरे राजनीतिक लाभ का मौका है – एक ओर ओबीसी समाज को मजबूत संदेश देना, और दूसरी ओर तमिलनाडु जैसे राज्य में अपनी राजनीतिक पैठ बनाना, जहां पार्टी अब तक सीमित सफलता ही पा सकी है।
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2026 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में एक लोकप्रिय, विवाद-मुक्त और दक्षिण भारतीय नेता को उपराष्ट्रपति पद का चेहरा बनाना भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग और क्षेत्रीय विस्तार की रणनीति का अहम हिस्सा माना जा सकता है।
विपक्ष की आलोचना से बचने की रणनीति
जगदीप धनखड़ के कार्यकाल में विपक्ष कई बार उन्हें पक्षपातपूर्ण और टकरावशील करार देता रहा है। वे राज्यसभा में कई बार विपक्षी सांसदों से सीधे उलझते देखे गए। इसके विपरीत, सीपी राधाकृष्णन की छवि निष्पक्ष, शांत और संतुलन बनाए रखने वाले नेता की रही है, जो उन्हें उच्च सदन के संचालन के लिए उपयुक्त बनाती है।
भाजपा को इस समय एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी जिसे लेकर विपक्ष को खुलकर विरोध करने का मौका न मिले। राधाकृष्णन इस मानदंड पर पूरी तरह खरे उतरते हैं।
निष्कर्ष
सीपी राधाकृष्णन की उम्मीदवारी भाजपा के भीतर और बाहर, दोनों स्तरों पर एक नई रणनीतिक सोच को दर्शाती है। जहां धनखड़ जैसे आक्रामक नेता की भूमिका पार्टी को पहले उपयुक्त लग रही थी, वहीं अब भाजपा ने एक ऐसे नेता को आगे बढ़ाया है जो संगठन के भीतर से है, दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व करता है, और संवैधानिक संतुलन बनाए रखने की छवि रखता है।
इस निर्णय से भाजपा ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि पार्टी अब विस्तार और समावेश की राजनीति को प्राथमिकता दे रही है, ना कि टकराव और विरोध की रणनीति को।