सीकर (राजस्थान): राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत मंगलवार को सीकर ज़िले के प्रसिद्ध रैवासा धाम पहुंचे, जहां उन्होंने ‘श्री सियपिय मिलन समारोह’ का उद्घाटन किया। यह आयोजन संत राघवाचार्य की प्रथम पुण्यतिथि (30 अगस्त) को समर्पित है। समारोह में भागवत ने संत राघवाचार्य की प्रतिमा का अनावरण किया और वेद विद्यालय के नए भवन का लोकार्पण भी किया।
आत्मीयता और प्रेरणा का केंद्र: राघवाचार्य
अपने संबोधन में मोहन भागवत ने संत राघवाचार्य को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वे शक्ति और भक्ति के अद्वितीय संगम थे। उन्होंने कहा, “यह भूमि मुझे राघवाचार्य जी की आत्मीयता की याद दिलाती है। मैंने उनसे यह सीखा कि सच्ची श्रद्धा का मार्ग सेवा और समर्पण से होकर जाता है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मेरी बुद्धि सदा सही दिशा में काम करे।”
भागवत ने यह भी उल्लेख किया कि राघवाचार्य से उनका संबंध उनके सरसंघचालक बनने के बाद बना और पहली ही मुलाकात में उन्हें उनका स्नेह और समर्पण स्पष्ट रूप से महसूस हुआ।
रैवासा धाम का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
रैवासा धाम न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह वही स्थान है जहां गोस्वामी तुलसीदास ने ‘जानकीनाथ सहाय’ जैसे काव्य की रचना की थी। संत राघवाचार्य ने राजस्थान में अनेक वेदाश्रमों की स्थापना की थी और यहां से शिक्षित विद्यार्थी आज देश की सेना और अन्य प्रतिष्ठानों में सेवा दे रहे हैं।
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देशभर से संतों और श्रद्धालुओं की भागीदारी
‘श्री सियपिय मिलन समारोह’ में भाग लेने के लिए देशभर से संत और श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। इस महोत्सव में योगगुरु बाबा रामदेव, बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री, श्रीगुरु शरणानंद जी महाराज, जगद्गुरु रामानंदाचार्य जैसे कई प्रमुख संत शामिल हो रहे हैं। पंडित इंद्रेश उपाध्याय 12 से 18 अगस्त तक धर्मप्रवचन करेंगे।
प्रशासनिक और सामाजिक सहभागिता
इस कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी, सीकर पुलिस अधीक्षक प्रवीण नूनावत समेत कई प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे। रैवासा धाम के प्रति स्थानीय लोगों में गहरी आस्था है और आयोजन के दौरान क्षेत्र में भारी उत्साह देखा गया।
इस भव्य धार्मिक आयोजन ने न केवल संत राघवाचार्य के योगदान को पुनः स्मरण किया, बल्कि रैवासा धाम की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को भी राष्ट्रीय मंच पर उजागर किया।