


मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। अदालत ने पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को प्रमाणित करने में विफल रहा है, इसलिए सभी को दोषमुक्त किया जा रहा है।
अदालत में भावुक हुईं साध्वी प्रज्ञा
निर्णय के बाद साध्वी प्रज्ञा अदालत में फूट-फूट कर रो पड़ीं। उन्होंने कहा, “मुझे जबरन आरोपी बनाया गया, 13 दिनों तक यातनाएं दी गईं और 17 साल तक अपमान सहना पड़ा। मैं एक संन्यासी हूं, इसलिए आज जीवित हूं। यह भगवा और हिंदुत्व की जीत है।”
जांच में खामियां, कोर्ट की सख्त टिप्पणी
विशेष न्यायाधीश अभय लोहाटी ने अपने फैसले में जांच की गंभीर खामियों की ओर इशारा किया। अदालत ने कहा कि न तो विस्फोटक की पुष्टि हुई, न ही यह साबित हो सका कि जो मोटरसाइकिल विस्फोट में उपयोग हुई, वह साध्वी प्रज्ञा की थी। जांच के दौरान फॉरेंसिक नमूने सही तरीके से नहीं लिए गए, घटनास्थल का स्केच, फिंगरप्रिंट या तकनीकी साक्ष्य एकत्र नहीं किए गए।
लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को भी क्लीन चिट
अदालत ने कहा कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के घर से कोई विस्फोटक बरामद नहीं हुआ और यह भी सिद्ध नहीं हुआ कि उन्होंने बम बनाया या आरडीएक्स की व्यवस्था की।
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मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने का आदेश
कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि विस्फोट में मारे गए लोगों के परिवारों को ₹2 लाख और घायलों को ₹50,000 का मुआवजा दिया जाए।

क्या था मामला?
29 सितंबर 2008 को रमजान के महीने में मालेगांव के भिक्कू चौक पर एक मस्जिद के पास बम विस्फोट हुआ था। इस घटना में 6 लोगों की मौत और 95 घायल हुए थे। शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की, जिसकी अगुवाई हेमंत करकरे ने की थी। बाद में केस एनआईए को सौंपा गया।
गवाहों के बयान पर सवाल
इस केस में 300 से अधिक गवाहों के बयान दर्ज किए गए, जिनमें से 40 गवाह अपने बयान से मुकर गए, 40 के बयान रद्द कर दिए गए और 40 गवाहों की मृत्यु हो गई।
इस ऐतिहासिक फैसले ने जहां आरोपियों को राहत दी है, वहीं जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली और साक्ष्य संकलन की गंभीरता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।