

नई दिल्ली। कैश बरामदगी मामले में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन इस याचिका में उन्होंने अपनी पहचान जाहिर नहीं की और अपने नाम की जगह ‘XXX’ लिखा। इस पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सुनवाई करते हुए नाराज़गी जाहिर की और कहा कि इस तरह से याचिका दाखिल करना उचित नहीं है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट की पीठ में जस्टिस दीपांकर दत्ता और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने कहा कि यह याचिका इस रूप में दायर नहीं की जानी चाहिए थी, क्योंकि इसमें सुप्रीम कोर्ट ही पहला पक्ष है। पीठ ने याचिका पर सवाल उठाते हुए यह भी पूछा कि याचिकाकर्ता जांच समिति के सामने क्यों पेश नहीं हुए।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दी दलीलें
जस्टिस वर्मा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। सिब्बल ने कहा कि नकदी एक आउटहाउस से बरामद हुई थी, जिसे सीधे जस्टिस वर्मा से जोड़ना अनुचित है। जब अदालत ने पूछा कि रिपोर्ट को रिकॉर्ड में क्यों नहीं जोड़ा गया, तो सिब्बल ने कहा कि वह रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में है।
‘XXX’ नाम से याचिका क्यों?
सुप्रीम कोर्ट में ‘XXX’ नाम से याचिका दाखिल करना तब सामान्य होता है जब मामला यौन उत्पीड़न, संवेदनशील पारिवारिक विवाद या नाबालिग की पहचान से जुड़ा हो। लेकिन इस केस में ऐसी कोई स्थिति नहीं थी, जिस पर कोर्ट ने आपत्ति जताई। कोर्ट ने साफ कहा कि इस तरह याचिका दाखिल करना न्यायिक प्रक्रिया के अनुरूप नहीं है।
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जांच समिति में न पेश होने पर उठे सवाल
पीठ ने यह भी पूछा कि जब जांच समिति गठित की गई थी, तब याचिकाकर्ता ने उसे चुनौती क्यों नहीं दी और इतना इंतजार क्यों किया। अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि न्यायाधीश इन प्रक्रियाओं में शामिल होने से अक्सर बचते रहे हैं।
अगली सुनवाई 30 जुलाई को
इस मामले में अगली सुनवाई अब 30 जुलाई को होगी, जहां कोर्ट मामले के सभी तथ्यों और प्रक्रियाओं की समीक्षा करेगा।
यह मामला न केवल न्यायपालिका की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी बताता है कि जब कोई संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया में राहत चाहता है, तो उसे भी पूरी पारदर्शिता और स्पष्टता के साथ पेश होना चाहिए।