

खेजड़ी कटान पर बवाल: ग्रामीणों पर फायरिंग, 191 पेड़ काटे गए
राज्य वृक्ष खेजड़ी की अवैध कटाई थमने का नाम नहीं ले रही है। एक ओर पर्यावरण प्रेमी लगातार इस गैरकानूनी गतिविधि का विरोध कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन की निष्क्रियता चिंता का विषय बनी हुई है। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि अब ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डालकर खेजड़ी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
ताजा मामला भानीपुरा की रोही का है, जहां मंगलवार रात पेड़ काटने की सूचना पर गश्त कर रहे ग्रामीणों ने जब मौके पर जाकर विरोध किया, तो लकड़कटों ने उन पर फायरिंग कर दी और वाहन लेकर फरार हो गए। सुबह ग्रामीणों की सूचना पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे। तहसीलदार और पटवारी ने घटनास्थल पर 191 खेजड़ी के पेड़ों के कटे होने की पुष्टि की है।
पर्यावरण प्रेमियों की पहल
पर्यावरण कार्यकर्ता मोखराम धारणिया ने बताया कि आधी रात को मिली सूचना के आधार पर जब वे अन्य ग्रामीणों के साथ मौके पर पहुंचे, तो आरा मशीन से पेड़ काटते हुए कुछ लोग दिखाई दिए। रोकने पर उन लोगों ने जानलेवा हमला कर दिया और मौके से भाग निकले।
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गांव में आक्रोश, सामूहिक कार्रवाई का निर्णय
घटना के बाद बुधवार सुबह भानीपुरा ग्राम पंचायत में ग्रामीणों की आपात बैठक हुई, जिसमें घटना की कड़ी निंदा करते हुए सामूहिक रूप से पूगल थाने में मामला दर्ज कराने का निर्णय लिया गया। ग्रामीणों ने आरोप लगाए हैं कि पेड़ काटने वालों ने न केवल राज्य वृक्ष को अवैध रूप से काटा बल्कि ग्रामीणों पर फायरिंग कर जानलेवा हमला किया और धार्मिक भावनाएं भी आहत कीं। ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि दोषियों की गिरफ्तारी हो, वाहनों व औजारों को जब्त किया जाए और मामले में कड़ी कार्रवाई की जाए।

धरने-प्रदर्शन का भी नहीं हुआ असर
पिछले दो वर्षों से खेजड़ी सहित हरे पेड़ों की अवैध कटाई को लेकर गांवों से लेकर जिला मुख्यालय तक कई बार धरने और प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन ठोस कार्रवाई न होने से लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण अब रात-रात भर रोही में पहरा देकर पेड़ों की रक्षा करने को मजबूर हैं।
प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल
स्थानीय लोग और पर्यावरण प्रेमी लगातार प्रशासन को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि अब भी दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो बड़ा जन आंदोलन किया जाएगा।
यह घटना न केवल पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी है, बल्कि यह भी दिखाती है कि राज्य वृक्ष के प्रति संवेदनशीलता सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई है।