

नई दिल्ली/अजमेर।
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के एक बेहद पुराने और संवेदनशील मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 37 साल पुराने हाईकोर्ट के निर्णय को पलट दिया है। यह मामला 1988 में अजमेर जिले में 11 वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार से जुड़ा है। कोर्ट ने आरोपी को अपराध के समय नाबालिग मानते हुए जेल की सजा रद्द कर दी है और उसे अब किशोर न्याय बोर्ड (JJB) के समक्ष पेश होने का आदेश दिया है।
क्या था मामला?
घटना 17 नवंबर 1988 की है, जब अजमेर जिले में एक नाबालिग बच्ची के साथ बलात्कार हुआ। इस मामले में एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था। 2024 में राजस्थान हाईकोर्ट ने निचली अदालत की ओर से सुनाई गई 5 साल की सजा को बरकरार रखा था।
सुप्रीम कोर्ट में बदली तस्वीर
दोषी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी कि अपराध के समय उनका मुवक्किल मात्र 16 वर्ष, 2 महीने और 3 दिन का था। कोर्ट ने इस पर गंभीरता से विचार किया और अजमेर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश से आयु की पुष्टि करवाई। जांच में यह तथ्य सामने आया कि आरोपी वास्तव में घटना के समय नाबालिग था।
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मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने माना कि किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के तहत अपराध के समय की उम्र ही महत्वपूर्ण होती है, न कि मुकदमे के दौरान या सजा के समय की उम्र।

अब क्या होगा?
अब 53 वर्षीय दोषी को जेल नहीं भेजा जाएगा, बल्कि किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया जाएगा, जहां वह अधिकतम तीन वर्षों तक विशेष सुधार गृह में रखा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत नाबालिग होने का दावा किसी भी स्तर पर और मुकदमे के बाद भी किया जा सकता है।
राज्य सरकार की दलीलें खारिज
राजस्थान सरकार की ओर से इस फैसले पर आपत्ति जताई गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि जब किसी व्यक्ति की अपराध के समय की उम्र 18 वर्ष से कम हो, तो किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधान लागू होते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट और निचली अदालत का फैसला टिकाऊ नहीं था।
महत्वपूर्ण कानूनी संदेश
इस फैसले ने यह कानूनी दृष्टिकोण भी स्पष्ट किया कि नाबालिग होने का दावा समय बीतने के बावजूद भी मान्य है, यदि प्रमाण पर्याप्त हों। इससे भविष्य के कई मामलों में कानूनी दृष्टांत स्थापित होगा।