

भारत में पुल गिरने की घटनाएं: आंकड़ों से उभरता गंभीर सच
गुजरात में एक और पुल हादसा
गुजरात के वडोदरा जिले में महीसागर नदी पर बना गंभीरा पुल 9 जुलाई 2025 की सुबह अचानक ढह गया। यह पुल वर्ष 1985 में बनाया गया था। हादसे में 10 लोगों की मौत हो गई जबकि 5 अन्य घायल हुए। यह घटना 2022 में मोरबी के माच्छु नदी पर हुए केबल ब्रिज हादसे की याद दिला गई, जिसमें 141 लोगों की जान चली गई थी।
देश में पुल गिरना सामान्य बनता जा रहा है
भारत में पुलों के गिरने की घटनाएं अब असामान्य नहीं रहीं। अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका Structure and Infrastructure Engineering में 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 1977 से 2017 तक भारत में कुल 2130 पुल ढह चुके हैं। यानी औसतन हर साल 53 से ज्यादा पुल गिरते हैं। यह संख्या देश की आधारभूत संरचना की गंभीर स्थिति को दर्शाती है।
बिहार में हालात चिंताजनक
साल 2024 में बिहार में महज 10 दिनों में चार पुल गिरने की घटनाएं सामने आईं। ये हादसे अररिया, सीवान, मोतीहारी और किशनगंज जिलों में हुए। इससे पहले गंगा नदी पर निर्माणाधीन पुल का गिरना भी सुर्खियों में रहा। इन घटनाओं के बाद आम चर्चा में यह बात फैल गई कि बिहार में पुल खुद गिर रहे हैं या चूहे कुतर रहे हैं।
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राष्ट्रीय राजमार्ग भी सुरक्षित नहीं
साल 2021 से 2024 के बीच देश के राष्ट्रीय राजमार्गों पर बने 21 पुल गिर चुके हैं। इनमें से 15 पुल पूर्ण रूप से तैयार थे जबकि 6 निर्माणाधीन थे। वर्ष 2020 से 2023 के बीच कुल 32 पुल ध्वस्त हुए। अकेले उत्तराखंड में इस अवधि में 5 पुल गिरे।

अमेरिका से तुलना में कहां खड़ा है भारत?
भारत ही नहीं, अमेरिका में भी पुल गिरने की घटनाएं होती हैं। अमेरिकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजीनियर्स के अनुसार, वहां हर साल औसतन 128 पुल गिरते हैं। हालांकि अमेरिका की तुलना में भारत में जांच, रखरखाव और समय पर मरम्मत की व्यवस्था बेहद कमजोर है।
आखिर क्यों गिरते हैं पुल?
1977 से 2017 तक 2130 पुलों के गिरने के कारणों का विश्लेषण करें तो इनमें 80.3% हादसे प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप आदि से हुए। 10.1% पुल खराब सामग्री और समय के साथ क्षरण के कारण गिरे। जबकि 3.28% हादसे अत्यधिक भार के कारण हुए।
पुल निर्माण के समय उसकी अनुमानित उम्र 50 साल मानी जाती है, लेकिन कई बार उस समय सीमा के बाद भी पुल का प्रयोग जारी रहता है। रखरखाव की कमी और समय पर निरीक्षण न होने की वजह से दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं।
निष्कर्ष
भारत में पुल गिरने की घटनाएं सिर्फ एक इंजीनियरिंग या रखरखाव की विफलता नहीं, बल्कि एक बड़ी नीति विफलता को भी दर्शाती हैं। जब तक समय पर निरीक्षण, मरम्मत और मजबूत नियोजन नहीं होगा, तब तक ये हादसे यूं ही दोहराए जाते रहेंगे।