

राजस्थान में RTE दाखिले में भारी गड़बड़ी, हजारों बच्चे अब भी स्कूल से बाहर
राज्य सरकार जहां शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम के तहत लाखों बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दिलाने का दावा कर रही है, वहीं राजधानी जयपुर समेत कई जिलों में हजारों अभिभावक अपने बच्चों के दाखिले को लेकर दर-दर भटक रहे हैं।
राजधानी जयपुर में 10 हजार से अधिक बच्चे प्रभावित
जयपुर के झालाना, सांगानेर, मालवीय नगर और सी-स्कीम जैसे इलाकों में निजी स्कूलों ने RTE के तहत प्रथम कक्षा में दाखिला देने से इनकार कर दिया है। जबकि अभिभावकों को शिक्षा विभाग की ओर से “प्रवेश स्वीकृत” होने का मैसेज तक आ चुका है।
स्कूलों का इनकार और विभाग की चुप्पी
निजी स्कूलों ने साफ शब्दों में कहा है कि वे पहली कक्षा को ‘एंट्री लेवल’ नहीं मानते, इसलिए वे RTE के अंतर्गत प्रवेश नहीं दे सकते। हाईकोर्ट के एक हालिया आदेश का हवाला देते हुए कई स्कूलों का कहना है कि प्रवेश केवल स्कूल की ‘प्रवेश स्तर’ कक्षा में ही मान्य है — जो उनके लिए नर्सरी या एलकेजी हो सकती है।
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दूसरी ओर, शिक्षा विभाग ने स्पष्ट दिशा-निर्देश अब तक जारी नहीं किए हैं और न ही प्रवेश से इनकार करने वाले स्कूलों पर कोई कार्रवाई हुई है।
कुछ जमीनी उदाहरण
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निजामुद्दीन (जलेब चौक): बेटे रिजानुद्दीन को लॉटरी में तीसरा स्थान मिला, फिर भी स्कूल ने दाखिला नहीं दिया।
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संदीप शर्मा (सांगानेर): बेटी आव्या को 173वां स्थान मिला, लेकिन स्कूल ने प्रवेश से इनकार कर दिया।
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अजय हल्देनिया (मालवीय नगर): बेटे को चयन के बावजूद स्कूल ने कक्षा 1 में नहीं लिया।
सरकारी आंकड़े और ज़मीनी हकीकत
राज्य सरकार के अनुसार, 2025-26 के लिए 3.08 लाख बच्चों का चयन RTE के तहत हुआ है, जिनमें 1.61 लाख बालक और 1.46 लाख बालिकाएं शामिल हैं। इनमें से लगभग 1.5 लाख बच्चे पहली कक्षा के लिए चयनित हैं। मगर ज़मीनी सच्चाई यह है कि हजारों बच्चों को अब तक किसी स्कूल में प्रवेश नहीं मिला है।
संघों और अभिभावकों का आक्रोश
संयुक्त अभिभावक संघ के प्रवक्ता अभिषेक जैन ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार केवल आंकड़े गिनाने में व्यस्त है, जबकि सच्चाई यह है कि हजारों बच्चों की पढ़ाई ठप पड़ी है। उन्होंने कहा, “विश्वास की बुनियाद हिल चुकी है, RTE प्रणाली एक मज़ाक बन चुकी है।”
सरकार का आश्वासन
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा, “प्रथम कक्षा में प्रवेश रोका नहीं जा सकता। निजी स्कूलों को पाबंद किया जाएगा कि वे चयनित बच्चों को प्रवेश दें। जिन अभिभावकों को समस्या आ रही है, उनकी शिकायतों का समाधान कराया जाएगा।”
निष्कर्ष
राज्य में RTE को लेकर नीतिगत भ्रम, विभागीय निष्क्रियता और निजी स्कूलों की मनमानी के कारण हजारों बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया है। सरकार के दावों और ज़मीनी हकीकत में फर्क साफ दिखाई दे रहा है। ऐसे में समय रहते स्पष्ट नीति और ठोस कार्रवाई जरूरी है।