


पतंजलि पर एक और फटकार: विज्ञापनों में बढ़ा-चढ़ाकर दावे, कोर्ट ने लगाई रोक, जानिए पुराने विवाद भी
योग गुरु बाबा रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि आयुर्वेद एक बार फिर कानूनी और नैतिक विवादों में घिर गई है। इस बार मामला पतंजलि के च्यवनप्राश के विज्ञापन से जुड़ा है, जिसमें डाबर जैसे प्रतिस्पर्धी ब्रांड को अप्रत्यक्ष रूप से कमतर दर्शाया गया है। डाबर इंडिया ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि पतंजलि का विज्ञापन प्रतिस्पर्धा की भावना से प्रेरित होकर डाबर च्यवनप्राश को नीचा दिखाता है।
अदालत की सख्त टिप्पणी
3 जुलाई 2025 को सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने पतंजलि पर विज्ञापन के माध्यम से दूसरे ब्रांड्स की छवि खराब करने का आरोप सही माना और अंतरिम रोक लगा दी। अदालत ने टिप्पणी की कि “व्यावसायिक स्वतंत्रता के नाम पर आम लोगों को भ्रामक या असत्य दावों से गुमराह नहीं किया जा सकता।”
यह पहला मामला नहीं है, जब बाबा रामदेव और पतंजलि अपने उत्पादों को लेकर विवादों में आए हों। इससे पहले भी कई मामलों में कंपनी को कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ा है। आइए, डालते हैं नजर उन प्रमुख विवादों पर जो पहले भी चर्चा में रहे—
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1. लाल मिर्च पाउडर में कीटनाशक की शिकायत
2025 की शुरुआत में FSSAI ने पतंजलि के लाल मिर्च पाउडर के एक बैच को गुणवत्ता मानकों के खिलाफ पाया और उत्पाद वापस मंगवाया गया। जांच में पाया गया कि इसमें कीटनाशक अवशेष तय मानकों से अधिक थे।
2. भ्रामक स्वास्थ्य दावे और केरल में केस
केरल के ड्रग्स कंट्रोल विभाग ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि पतंजलि ने चमत्कारिक औषधीय दावों वाले विज्ञापनों के माध्यम से औषधि और चमत्कारी उपचार अधिनियम, 1954 का उल्लंघन किया है। राज्य में कंपनी के खिलाफ 31 मुकदमे दर्ज किए गए हैं।

3. ‘शरबत जिहाद’ टिप्पणी और धार्मिक विवाद
3 अप्रैल 2025 को बाबा रामदेव ने एक शरबत लॉन्च करते हुए विवादास्पद बयान दिया, जिसे ‘रूह अफजा’ ब्रांड से जोड़कर देखा गया। इस पर हमदर्द कंपनी ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की और रामदेव को धार्मिक भेदभाव फैलाने का दोषी बताया। कोर्ट ने रामदेव को चेताया और बयान को प्रथम दृष्टया अदालत की अवमानना करार दिया।
4. कोरोनिल का भ्रामक प्रचार
2020 में रामदेव ने कोरोनिल नामक आयुर्वेदिक दवा को कोरोना वायरस की प्रभावी चिकित्सा के रूप में प्रचारित किया। IMA और स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस पर सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को भ्रामक दावे बंद करने की चेतावनी दी और बाद में कंपनी को सार्वजनिक माफी जारी करनी पड़ी।
5. एलोपैथी और स्वास्थ्य दावों पर विरोध
पतंजलि के विज्ञापनों में अस्थमा, डायबिटीज, मोटापा, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों के लिए “पूर्ण इलाज” के दावे किए गए, जिन्हें मेडिकल बिरादरी ने ग़लत और भ्रामक बताया। IMA ने इसे “जनता को गुमराह करने वाला” बताया और कानूनी कार्यवाही की मांग की।
निष्कर्ष
बाबा रामदेव और पतंजलि लगातार ऐसे दावों और बयानों को लेकर विवादों में घिरे रहे हैं, जिनमें वैज्ञानिक प्रमाण या नियामकीय मंजूरी की कमी रही है। कई बार कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई है, और सार्वजनिक माफ़ी भी मांगनी पड़ी है। डाबर विवाद ताजा उदाहरण है, जहां प्रतिस्पर्धी कंपनियों के खिलाफ आक्रामक प्रचार को अदालत ने अस्वीकार्य बताया है।