


बीकानेर में बढ़ रहा जुए का जाल, युवाओं की जिंदगी को बना रहा बर्बादी की कहानी
बीकानेर शहर में दिखावे और आसान पैसे की चाह में युवा लगातार गलत राह पर बढ़ते जा रहे हैं। क्रिकेट सट्टा हो या फिर पासों पर खेले जाने वाला जुआ, जिसे स्थानीय भाषा में ‘घोड़ी’ कहा जाता है, इन सबका प्रभाव युवाओं पर खतरनाक होता जा रहा है।
इन आदतों को बढ़ावा देने वाले गिरोह युवाओं को रातोंरात अमीर बनने का सपना दिखाकर इस दलदल में धकेल रहे हैं। नतीजा यह है कि कई युवा कर्ज में डूब चुके हैं और कुछ ने तो मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लिया है।
बीकानेर में यह जुआ कोई छिपा हुआ खेल नहीं है। यह सालभर, हर दिन देर शाम से लेकर अलसुबह तक कई जगहों पर खुलेआम खेला और खिलाया जा रहा है। कुछ स्थानों पर घरों में बाकायदा इसका आयोजन होता है, जहां खिलाड़ियों के लिए पूरी व्यवस्था रहती है। जुआ चलाने वालों को हर घंटे “छर्रें” के नाम पर निश्चित राशि दी जाती है।
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इस खेल में सोने के आभूषणों, गाड़ियों और अन्य महंगी चीजों पर तुरंत पैसे फाइनेंस किए जाते हैं, जिससे जुए में बड़ी रकम लगाई जा सके। युवाओं को फंसाने के लिए इन्हें जान-बूझकर इस खेल में उतारा जाता है, और अंदर की ‘सेटिंग’ से जुड़ी जानकारी देकर उनका आत्मविश्वास बढ़ाया जाता है।

शहर के कई इलाकों में ऐसे अड्डे खुलेआम चल रहे हैं, जिनके बारे में सब कुछ जानते हुए भी पुलिस कोई ठोस कार्रवाई नहीं करती। यह उदासीनता और मिलीभगत प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है।
चुनावों से पहले बड़ी-बड़ी बातें करने वाले नेता भी इस सामाजिक संकट को लेकर चुप हैं। अब समय आ गया है कि जनप्रतिनिधि, प्रशासन और समाज मिलकर इस बुराई के खिलाफ एकजुट हों। युवाओं को इस दलदल से बाहर निकालना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो यह लत न केवल व्यक्तिगत जीवन बल्कि पूरे समाज की दिशा और दशा को बिगाड़ सकती है।