


वकील होने के कारण ऋण अस्वीकृत करना बैंकिंग कंपनी का स्वेच्छाचारी कदम: उपभोक्ता फोरम बीकानेर
चोलामंडलम कंपनी को दोषी मानते हुए मुआवजा देने का आदेश
बीकानेर। केवल अधिवक्ता होने के आधार पर ऋण आवेदन खारिज करना अब वित्तीय संस्थान को महंगा पड़ गया है। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बीकानेर ने चोलामंडलम इन्वेस्टमेंट एंड फाइनेंस कंपनी को दोषी मानते हुए उसे उपभोक्ता सेवा में गंभीर त्रुटि का दोषी ठहराया है और मुआवजा देने का आदेश दिया है।
यह फैसला गोपाल सिंह सोलंकी बनाम चोलामंडलम इन्वेस्टमेंट एंड फाइनेंस कंपनी लिमिटेड प्रकरण में सुनाया गया। आयोग के अध्यक्ष नरसिंहदास व्यास, सदस्य ओमप्रकाश और सावित्री सुथार ने माना कि अधिवक्ता समाज का बुद्धिजीवी और सम्मानित वर्ग है, और किसी को महज उनके पेशे के आधार पर ऋण देने से इनकार करना असंवैधानिक और पूर्वाग्रहपूर्ण है।
‘‘विवेकाधिकार का मतलब निरंकुशता नहीं’’
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि किसी भी अधिकृत अधिकारी को मिले अधिकारों का प्रयोग विधिसम्मत और निष्पक्ष होना चाहिए। विवेकाधिकार का मतलब यह नहीं कि वह अधिकारी अपने पूर्वग्रह के आधार पर निर्णय ले या निरंकुशता दिखाए।
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आदेश में क्या कहा गया?
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कंपनी द्वारा वसूली गई प्रोसेसिंग फीस ₹5500 नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित लौटाई जाए।
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मानसिक प्रताड़ना के लिए ₹10,000 क्षतिपूर्ति दी जाए।
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वाद व्यय के रूप में अतिरिक्त ₹10,000 दिए जाएं।
यह भी कहा आयोग ने:
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस तरह के कृत्य को हतोत्साहित किया जाना आवश्यक है ताकि भविष्य में किसी उपभोक्ता के साथ उसके पेशे या सामाजिक पहचान के आधार पर भेदभाव न हो।
परिवादी गोपाल सिंह सोलंकी ने स्वयं और एडवोकेट हनुमान सिंह पडिहार के माध्यम से अपनी पैरवी की।