


आरजीएचएस में बदलाव की शुरुआत: मरीजों की सुविधा बढ़ाने पर जोर
राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) में जल्द ही बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। योजना के संचालन का जिम्मा अब चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के पास है, और विभाग इसे और अधिक पारदर्शी और मरीजों के अनुकूल बनाने की दिशा में काम कर रहा है।
मां योजना जैसा मॉडल लागू करने की तैयारी
स्वास्थ्य विभाग, मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य बीमा (मां योजना) की तर्ज पर आरजीएचएस को पुनः संरचित करने की योजना बना रहा है। इसके तहत एक्शन प्लान तैयार किया जा रहा है, जो सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और प्रभावशीलता लाने का प्रयास होगा।
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ब्रांडेड जैनरिक दवाओं की समीक्षा
वर्तमान में आरजीएचएस एकमात्र सरकारी योजना है जिसमें ब्रांडेड और ब्रांडेड जैनरिक दवाएं लिखी जाती हैं। इससे योजना का खर्चा 600 करोड़ से बढ़कर 4 हजार करोड़ से अधिक हो गया है। विभाग इस बात पर विचार कर रहा है कि ब्रांडेड जैनरिक दवाओं को योजना से हटाया जाए, क्योंकि इनकी कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं होता और इनसे भ्रष्टाचार की संभावना बढ़ती है।
सिस्टम की खामियों का खुलासा
आरजीएचएस की कार्यप्रणाली में कई समस्याएं सामने आई हैं:
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ब्रांडेड जैनरिक कंपनियों में प्रतिस्पर्धा है कि वे किसी भी तरह अपनी दवाएं सूची में शामिल करवाएं।
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निलंबित अस्पताल फिर से बहाली के प्रयास करते हैं।
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संबद्ध अस्पताल क्लेम पास करवाने के लिए दबाव बनाते हैं।
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मरीजों को दवाएं मिलने में बाधाएं आती हैं।
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दवा विक्रेताओं को समय पर भुगतान न मिलने से दवा आपूर्ति बाधित होती है।
मरीजों की सुविधा प्रभावित
अनियमितताओं को रोकने के लिए उठाए गए कदमों से कई बार मरीजों की सुविधाएं भी प्रभावित हुई हैं। सैकड़ों निजी अस्पताल और दवा दुकानें निलंबित की गईं, जिससे विकल्प सीमित हो गए। चिकित्सकों के लिए दवा पर्ची पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य किया गया, जिससे 70% डॉक्टरों ने दवाएं लिखना ही बंद कर दिया।
सुधार के लिए नई एसओपी और फीडबैक सिस्टम
राज्य सरकार की योजना है कि इसे पेंशेंट फ्रेंडली बनाया जाए। इसके लिए पोर्टल पर लाभार्थियों को फीडबैक देने का विकल्प दिया जाएगा और एक नई एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) बनाई जाएगी। विभाग का कहना है कि अनियमितता पर जीरो टोलरेंस नीति के तहत कार्रवाई होगी।
कैशलेस सुविधा पर सवाल
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) का कहना है कि पूर्व में राज्य कर्मचारियों को चिकित्सा बिलों के पुनर्भरण के आधार पर सेवाएं मिलती थीं, जिससे सरकार पर खर्च कम था। उनका सुझाव है कि कैशलेस सुविधा बंद की जाए और केवल उन्हीं दवा दुकानों को योजना में शामिल किया जाए जहां दवा उपलब्ध हो। साथ ही, सीजीएचएस जैसे मॉडल को पूरी तरह अपनाया जाए।
निष्कर्ष
आरजीएचएस में पारदर्शिता, बजट नियंत्रण और मरीजों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए व्यापक बदलाव किए जा रहे हैं। आने वाले समय में यह योजना अधिक सशक्त, जवाबदेह और लाभार्थियों के हित में सिद्ध हो सकती है।