


संयुक्त राष्ट्र में बिलावल की स्वीकारोक्ति: कश्मीर पर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार हार
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को वैश्विक मंचों पर लगातार असफलताओं का सामना करना पड़ रहा है। न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने माना कि भारत की मज़बूत कूटनीतिक रणनीति के चलते पाकिस्तान अब कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने में नाकाम हो रहा है। यह बयान इस्लामाबाद की विदेश नीति के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
भारत के ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान की परेशानी बढ़ी
बिलावल इन दिनों एक आधिकारिक संसदीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए अमेरिका में हैं। यह प्रतिनिधिमंडल भारत के “ऑपरेशन सिंदूर” और क्षेत्रीय तनावों को लेकर पाकिस्तान का पक्ष रखने के लिए अमेरिका पहुंचा है। यह सैन्य अभियान भारत ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में शुरू किया था, जिसमें 26 आम नागरिकों की जान गई थी। इस घटनाक्रम ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सफाई देने के लिए मजबूर कर दिया है।
कश्मीर पर पाकिस्तान को नहीं मिल रहा वैश्विक समर्थन
बिलावल ने यह भी स्वीकार किया कि जहां आतंकवाद और जल विवाद जैसे मुद्दों पर कुछ देशों की सहानुभूति मिल जाती है, वहीं कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया बेहद सीमित रही है। यह बयान स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान की कूटनीतिक रणनीति अब प्रभावहीन हो चुकी है, जबकि भारत का वैश्विक प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
भारत की रणनीति की नकल करता दिखा पाकिस्तान
पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की अमेरिका यात्रा, भारत के उस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की तर्ज पर है जो हाल ही में पहलगाम हमले के बाद वैश्विक समुदाय को भारत की स्थिति से अवगत कराने गया था। विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान का यह प्रयास भारत के प्रभाव को संतुलित करने की एक विफल कोशिश भर है।
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संयुक्त राष्ट्र में मैराथन बैठकों के बावजूद कोई ठोस समर्थन नहीं
बिलावल और उनके दल ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, महासभा अध्यक्ष फिलेमोन यांग और सुरक्षा परिषद की अध्यक्ष कैरोलिन रोड्रिग्स-बिर्केट सहित कई वैश्विक नेताओं से मुलाकात की। हालांकि, इन बैठकों के बाद पाकिस्तान के पक्ष में कोई निर्णायक समर्थन नहीं मिला। अमेरिका, रूस, चीन और फ्रांस जैसे देशों से हुई चर्चाएं भी महज औपचारिकता तक सीमित रहीं।
भारत-पाक प्रतिनिधिमंडल आमने-सामने
वाशिंगटन डीसी में बुधवार को पाकिस्तान और भारत के प्रतिनिधिमंडल लगभग एक ही समय पर मौजूद रहेंगे। भारत का दल कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अगुवाई में अमेरिका पहुंचा है। इस प्रतिनिधिमंडल में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के सांसद शामिल हैं और इसका उद्देश्य है भारत की आतंकवाद विरोधी नीति और संप्रभुता की रक्षा का मजबूत संदेश देना।

भारत की proactive कूटनीति को मिली सफलता
बिलावल के बयान के बाद भारत के कूटनीतिक हलकों में इसे पाकिस्तान की ‘मौखिक पराजय’ करार दिया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत अब सिर्फ प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि सक्रिय कूटनीति के रास्ते पर है। थिंक टैंक विशेषज्ञ माइकल कुगलमैन ने इसे पाकिस्तान की रणनीतिक विफलता करार देते हुए कहा कि जब कोई देश सार्वजनिक मंच पर हार स्वीकार करता है, तो यह उसकी अंदरूनी कमजोरी का संकेत होता है।
संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर उठे सवाल
इस घटनाक्रम ने संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को लेकर भी प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। क्या UN अब केवल औपचारिक मंच बनकर रह गया है, या वह अभी भी प्रभावी भूमिका निभाने में सक्षम है — इस पर विशेषज्ञों और कूटनीतिज्ञों के बीच बहस शुरू हो गई है।
सोशल मीडिया पर भारत-पाक आमने-सामने
सोशल मीडिया पर भारत और पाकिस्तान के नागरिकों के बीच इस मुद्दे पर तीखी बहस छिड़ गई है। पाकिस्तानी उपयोगकर्ता इसे “ईमानदारी” बता रहे हैं, जबकि भारतीय यूजर्स ने इसे “राजनयिक पराजय” करार दिया है।
निष्कर्ष: पाकिस्तान की रणनीति विफल, भारत कूटनीतिक मोर्चे पर आगे
बिलावल की स्वीकारोक्ति से यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग पड़ता जा रहा है, जबकि भारत कूटनीतिक रूप से लगातार अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। आने वाले समय में यह मुद्दा न केवल पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में उबाल ला सकता है, बल्कि दक्षिण एशिया की रणनीतिक दिशा को भी प्रभावित करेगा।