


दिल्ली हाईकोर्ट का अनोखा फैसला: छात्रा को ब्लैकमेल करने वाले सीनियर की एफआईआर रद्द, सामुदायिक सेवा का आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ब्लैकमेलिंग के मामले में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए आरोपी युवक को अनोखी सजा सुनाई है। अदालत ने आरोपी को दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में एक महीने तक सामुदायिक सेवा करने और सैनिक कल्याण कोष में ₹50,000 जमा कराने का निर्देश दिया है। यह आदेश 27 मई 2025 को सुनाया गया।
क्या है मामला?
यह मामला वर्ष 2017-2018 का है, जब दिल्ली के एक कॉलेज में पढ़ने वाला सीनियर छात्र एक नाबालिग जूनियर छात्रा के साथ रिश्ते में था। रिश्ते के दौरान आरोपी ने छात्रा से उसकी निजी तस्वीरें यह कहकर लीं कि ऐसा रिलेशनशिप में सामान्य होता है। लेकिन जब दोनों के बीच रिश्ते में दरार आई, तो फरवरी 2018 में युवक ने इन तस्वीरों के जरिए छात्रा को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया।
छात्रा से ₹6,000 की मांग की गई और धमकी दी गई कि पैसे न देने पर तस्वीरें इंटरनेट पर डाल दी जाएंगी। मजबूरी में किशोरी ने कई बार पैसे दिए। अप्रैल 2018 में आरोपी के एक दोस्त ने भी इसी तरह की धमकी देकर पैसे वसूले। परेशान होकर पीड़िता ने 2019 में परिजनों को पूरी बात बताई, जिसके बाद आरोपी और उसके दोस्त के खिलाफ पॉक्सो एक्ट और आईपीसी की कई धाराओं में एफआईआर दर्ज कराई गई।
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कोर्ट की सुनवाई और फैसला
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को स्वीकार करते हुए कहा कि यह घटना न केवल व्यक्तिगत गरिमा का उल्लंघन है, बल्कि डिजिटल माध्यमों के दुरुपयोग का उदाहरण भी है। हालांकि, पीड़िता ने अदालत में हलफनामा देकर कहा कि वह अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहती क्योंकि इससे उसके सामाजिक जीवन और भविष्य पर बुरा असर पड़ सकता है।

कोर्ट ने कहा कि सामान्यतः इस प्रकार के गंभीर आरोपों में एफआईआर रद्द नहीं की जाती, लेकिन पीड़िता के निजता और सम्मान के अधिकार को ध्यान में रखते हुए यह एक विशेष मामला है। आरोपी ने भी शपथपत्र देकर कहा है कि उसके पास अब कोई भी निजी तस्वीर शेष नहीं है।
सजा के रूप में सामुदायिक सेवा और आर्थिक दंड
अदालत ने आरोपी को एक महीने तक लोक नायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में सामुदायिक सेवा करने का आदेश दिया है। साथ ही, सैनिक कल्याण कोष में ₹50,000 का जुर्माना भरने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि आरोपी सेवा के दौरान अनुपस्थित रहता है या अनुशासनहीनता करता है, तो चिकित्सा अधीक्षक को पुलिस को सूचित करना होगा, और ऐसी स्थिति में रद्द की गई एफआईआर को दोबारा बहाल किया जा सकता है।
इस निर्णय को अदालत ने सुधारात्मक न्याय की दिशा में एक संवेदनशील कदम बताया है, जिसमें पीड़िता के हितों को सर्वोपरि रखा गया है।