


राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) में हाल ही में किए गए बदलावों के कारण मरीजों, खासकर बुजुर्गों, दिव्यांगों और गंभीर रोगियों को घर पर इलाज लेने में भारी दिक्कतें आ रही हैं। पहले जहां कई चिकित्सक योजना के तहत मरीजों के घर जाकर इलाज करते थे, अब योजना के नए नियमों के चलते उन्होंने यह सेवा देना बंद कर दिया है।
केस एक:
सीकर निवासी 72 वर्षीय रामस्वरूप शर्मा को एक्सीडेंट के बाद नियमित रूप से फिजियोथैरेपी और आर्थोपेडिक विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। पहले दोनों चिकित्सक सप्ताह में तीन दिन घर आकर इलाज करते थे। लेकिन अब उन्होंने एनपीए (नॉन प्रैक्टिस एलाउंस) छोड़ने का हवाला देते हुए योजना के तहत घर पर आकर इलाज करने से मना कर दिया है। नए नियमों के अनुसार अब रामस्वरूप को अस्पताल ले जाना पड़ेगा, जो उनके लिए काफी मुश्किल है।
केस दो:
दातारामगढ़ निवासी और राजस्व विभाग से सेवानिवृत्त रामकिशोर ने बताया कि उनकी बुजुर्ग मां को पहले हर सप्ताह चिकित्सक घर आकर देख लेते थे। लेकिन अब चिकित्सकों ने स्पष्ट कहा है कि नियम बदल गए हैं और अब मरीज को अस्पताल लाना अनिवार्य है।
क्या हैं नए बदलाव:
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घर पर सेवा देने वाले चिकित्सकों को अब एसएसओ आईडी अनिवार्य रूप से देनी होगी।
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चिकित्सकों को नॉन प्रैक्टिस एलाउंस (एनपीए) छोड़ने की विभाग को सूचना देनी होगी।
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मरीज का उपचार संबंधित डेटा चिकित्सक को अपनी स्वयं की आईडी से सब्मिट करना होगा।
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यदि ये शर्तें पूरी नहीं होती हैं तो योजना के अंतर्गत कैशलेस उपचार मिलने में दिक्कत आ सकती है।
चिकित्सकों का कहना है कि एनपीए छोड़ने से उनकी वेतन व्यवस्था और प्राइवेट प्रैक्टिस प्रभावित हो सकती है, इसलिए कई चिकित्सक योजना से हट रहे हैं। इससे आम मरीज, विशेषकर असहाय और गंभीर मरीजों को परेशानी हो रही है।
प्रमुख तथ्य:

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राजस्थान में आरजीएचएस कार्डधारक: 13.5 लाख
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सीकर जिले में कार्डधारक: लगभग 50,000
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घर पर इलाज लेने वाले मरीज: 2.2 लाख से अधिक
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प्रदेश में प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले चिकित्सक: लगभग 18,000
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जिले में ऐसे चिकित्सक: 400
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प्रदेश में पैनल चिकित्सक: लगभग 1,500
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जिले में पैनल चिकित्सक: लगभग 400
आरजीएचएस से जुड़े लोगों का कहना है कि इन बदलावों के कारण प्रतिदिन बड़ी संख्या में मरीज और उनके परिजन परेशान हो रहे हैं। योग्य होते हुए भी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है क्योंकि चिकित्सकों की भागीदारी कम होती जा रही है।