


राजस्थानी फिल्म ‘ओमलो’ ने कांस फिल्म फेस्टिवल में रच दिया नया इतिहास, धोलिया गांव सहित पूरे श्रीडूंगरगढ़ में उत्साह का माहौल
राजस्थान के लिए गर्व का क्षण आया जब पहली बार किसी राजस्थानी भाषा की फिल्म ‘ओमलो’ का प्रीमियर कांस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में हुआ। इस विशेष उपलब्धि के बाद बीकानेर ज़िले के श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र और खासकर धोलिया गांव में जश्न का माहौल बन गया।
कभी बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग के लिए प्रसिद्ध रहे श्रीडूंगरगढ़ के रेतीले धोरे अब फिर से सिनेमा के पर्दे पर लौट आए हैं। ‘ओमलो’ फिल्म की पूरी शूटिंग गांव धोलिया में हुई, जिसने इस छोटे से गांव को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिला दी। यह फिल्म पारिवारिक हिंसा और एक मासूम बच्चे के भावनात्मक जीवन पर आधारित है, जिसमें एक ऊंट के साथ उसके गहरे रिश्ते को भी दर्शाया गया है।
गांव वालों ने निभाए अहम किरदार
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करीब दो वर्ष पहले बनी इस फिल्म में धोलिया गांव के ही कई ग्रामीणों ने बिना किसी पारिश्रमिक के अभिनय किया। मुख्य किरदार ‘ओमलो’ और उसके दोस्त की भूमिका क्रमशः हरि मोदी व रामदेव सिंवल ने निभाई। ओमलो की बहन का प्रभावशाली किरदार शिवानी गढ़वाल ने निभाया। इसके अलावा रामूराम गोदारा, रामरख सारण, सुरेश गोदारा, मघाराम सहू समेत गांव की कई महिलाओं ने भी विभिन्न भूमिकाएं निभाईं। प्रोडक्शन की पूरी जिम्मेदारी गांव के ही युवा सुभाष गोदारा ने संभाली।
स्थानीय रंगमंच कलाकारों का भी योगदान
बीकानेर के वरिष्ठ रंगकर्मी रमेश शर्मा और मीनू गौड़ जैसे अनुभवी कलाकारों ने फिल्म में विशेष भूमिकाएं निभाई हैं। इस फिल्म का निर्देशन मुंबई के रणदीप चौधरी ने किया जबकि आर्ट डायरेक्शन यतीन राठौड़ द्वारा किया गया।

गांव का सहयोग और सादगी बनी प्रेरणा
शूटिंग के दौरान गांववासियों का सहयोग, साधनों की उपलब्धता और सहज वातावरण ने फिल्म निर्माण को आसान और स्मरणीय बना दिया। बुजुर्ग रामूराम गोदारा ने बताया कि किसी ने भी मेहनताना नहीं लिया और सभी ने दिल से सहयोग किया। शूटिंग में उपयोग होने वाले संसाधनों जैसे गाड़ियां, ऊंट, बकरियां आदि के जरिए गांव में लगभग दो लाख रुपये की आमदनी भी हुई।
भावनात्मक विषयवस्तु और समाजिक संदेश
‘ओमलो’ फिल्म एक सात वर्षीय बालक और ऊंट के बीच विकसित होने वाले रिश्ते को केंद्र में रखती है। यह फिल्म न केवल भावनात्मक रूप से दर्शकों को जोड़ती है, बल्कि घरेलू हिंसा और महिलाओं की पीड़ा जैसे गंभीर विषयों पर भी प्रकाश डालती है। यह फिल्म एक मां की उस चुप प्रार्थना को प्रस्तुत करती है, जिसमें वह अपने बेटे से आशा करती है कि वह दर्द और हिंसा के इस चक्र को तोड़ पाएगा।
नई उम्मीद, नया जोश
राजस्थानी सिनेमा के लिए ‘ओमलो’ एक मील का पत्थर बनकर सामने आई है। कांस फेस्टिवल में इसका चयन और प्रदर्शन पूरे क्षेत्र के लिए गर्व की बात है और इससे राजस्थानी कलाकारों, ग्रामीण प्रतिभाओं और क्षेत्रीय सिनेमा को नई पहचान और दिशा मिली है।