


जेएनयू में एबीवीपी की बड़ी जीत, वामपंथी गढ़ में नया अध्याय
नई दिल्ली। दशकों से वामपंथी विचारधारा के प्रभाव में रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में 2025 के छात्रसंघ चुनावों ने नया इतिहास रच दिया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने इस बार प्रभावशाली प्रदर्शन करते हुए वामपंथ के इस मजबूत गढ़ में गहरी सेंध लगाई। रविवार को हुई मतगणना में एबीवीपी ने केंद्रीय पैनल के चारों पदों—अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव—पर बढ़त बनाए रखते हुए 42 में से 23 काउंसलर सीटों पर भी कब्जा कर लिया।
वैभव मीणा बने संयुक्त सचिव
मतगणना देर रात तक चली, जिसमें 3000 से अधिक वोटों की गिनती हुई। एबीवीपी के प्रत्याशी हर प्रमुख पद पर आगे रहे। अध्यक्ष पद पर शिखा स्वराज ने आइसा और डीएसएफ के साझा उम्मीदवार नीतीश कुमार के खिलाफ बढ़त हासिल की। उपाध्यक्ष पद पर निट्टू गौतम, महासचिव पद पर कुणाल राय और संयुक्त सचिव पद पर वैभव मीणा ने मजबूत प्रदर्शन करते हुए अपनी जीत को सुनिश्चित किया। खासतौर पर वैभव मीणा की संयुक्त सचिव पद पर विजय ने एबीवीपी की सफलता को और मजबूत किया है।

वामपंथी दबदबे के बीच एबीवीपी का उभार
जेएनयू में लंबे समय से आइसा, एसएफआई और डीएसएफ जैसे वामपंथी संगठनों का वर्चस्व रहा है। इस चुनाव में एबीवीपी की आक्रामक रणनीति और छात्रों के मुद्दों पर मुखर अभियान ने वामपंथी संगठनों को कड़ी चुनौती दी। वैभव मीणा जैसे युवा नेताओं ने संगठन की विचारधारा को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते हुए छात्रों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया।
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जेएनयू की छात्र राजनीति में बदलाव के संकेत
एबीवीपी की यह जीत न केवल संगठन के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, बल्कि जेएनयू की छात्र राजनीति में वैचारिक विविधता के विस्तार का भी संकेत देती है। इस परिणाम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जेएनयू में छात्र अब नए राजनीतिक विकल्पों को भी स्वीकार करने लगे हैं। एबीवीपी की यह उपलब्धि आने वाले वर्षों में जेएनयू की राजनीतिक दिशा को भी प्रभावित कर सकती है।