


बॉर्डर पर फंसी महिलाएं, परिवार से मिलने की उम्मीद
पाकिस्तान से भारत लौटने की कोशिश कर रही कुछ पाकिस्तानी महिलाओं को अटारी बॉर्डर पर बीएसएफ ने रोक लिया है। यह महिलाएं भारत में पली-बढ़ी हैं, लेकिन उनकी शादी पाकिस्तान में हुई है और वे अपने शौहर और बच्चों के पास लौटना चाहती थीं। लेकिन अधिकारियों का कहना था कि भारतीय पासपोर्ट धारकों को पाकिस्तान जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। हालांकि, इन महिलाओं के साथ आए बच्चों को, जो पाकिस्तानी नागरिक थे, बॉर्डर पार करने की इजाजत दे दी गई, जबकि इन महिलाओं को रोक लिया गया।
शनीजा की दर्दभरी दास्तान
दिल्ली की शनीजा की आँखों में बेबसी साफ नजर आ रही थी। उसने बताया कि 15 साल पहले उसकी शादी कराची में हुई थी और वह अपने माता-पिता से मिलने दिल्ली आई थी। अब वह वापस पाकिस्तान जाने के लिए अटारी बॉर्डर पहुंची, लेकिन उसे रोक लिया गया। शनीजा की नागरिकता का मामला पाकिस्तानी कोर्ट में लंबित है, और उसे अब सीमा पर ही लाचार छोड़ दिया गया। उसने कहा, “मेरे शौहर वाघा बॉर्डर के पार मेरा इंतजार कर रहे हैं। मेरी बस इतनी अपील है कि मुझे मेरे बच्चों के पास जाने दिया जाए।”
अफसीन का टूटता सपना
राजस्थान के जोधपुर की अफसीन जहांगीर की कहानी भी उतनी ही दुखद है। उसकी शादी कराची में हुई थी, और उसके बच्चे पाकिस्तानी नागरिक हैं। बच्चों को तो बॉर्डर पार करने की इजाजत मिल गई, लेकिन अफसीन को रोक लिया गया। उसकी आंखों में अपने बच्चों से बिछड़ने का दर्द साफ दिखाई दे रहा था। अफसीन ने कहा, “मेरे बच्चे वहां हैं, और मैं यहां अकेली फंस गई हूं। क्या यह इंसाफ है?”
अरूदा की बेबसी
पाकिस्तान की अरूदा, जो 20 साल पहले शादी के बाद पाकिस्तान में बस गई थी, अपने दो बच्चों के साथ एक महीने पहले भारत आई थी। उसकी वापसी की टिकट 27 अप्रैल को थी, लेकिन जब माहौल बिगड़ने लगा, तो वह जल्दी ही अटारी बॉर्डर पहुंच गई। हालांकि, उसे भी रोक लिया गया। बच्चों को पार करने की इजाजत मिल गई, लेकिन अरूदा को पीछे छोड़ दिया गया। वह कहती हैं, “हम तो बस अपने घर, अपने बच्चों के पास लौटना चाहते हैं, कोई हमारी मदद नहीं कर रहा।”
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बॉर्डर पर बिखरे परिवार
अटारी बॉर्डर पर इन महिलाओं की कहानियां सिर्फ कागजी कार्रवाई या नागरिकता के सवालों तक सीमित नहीं हैं। यह उन परिवारों की त्रासदी है, जो दो मुल्कों की सियासत और सख्त नियमों के बीच पिस रहे हैं। इन महिलाओं की आंखों में अपने शौहर और बच्चों से मिलने की बेचैनी और अनिश्चित भविष्य का डर साफ दिखाई देता है। बॉर्डर अब सिर्फ एक रेखा नहीं, बल्कि उनके अपनों से दूर जाने वाली दीवार बन गई है।
क्या इन महिलाओं को उनके परिवारों से मिलने का हक मिलेगा? क्या उनकी दलीलें और आंसुओं का कोई असर होगा? यह सवाल इंसानियत के लिए एक बड़ा सवाल बनकर उभर रहा है।