महाकुंभ 2025: अखाड़ों में ‘राष्ट्रपति शासन’ लागू, नई सरकार के गठन की तैयारी
प्रयागराज। महाकुंभ 2025 के आरंभ के साथ ही अखाड़ों की मौजूदा कार्यकारिणी भंग कर दी गई और ‘पंचायती परंपरा’ पर आधारित नई व्यवस्था लागू कर दी गई है। अब महाकुंभ के समापन तक अखाड़ों का संचालन पंचायती व्यवस्था के माध्यम से किया जाएगा। इसके बाद नए अष्टकौशल (कार्यकारिणी) का गठन किया जाएगा, जो अगले छह वर्षों तक अखाड़ों के आध्यात्मिक और आर्थिक कार्यों का संचालन करेगा।
महंतों का चुनाव और अष्टकौशल की भूमिका
अखाड़ों की परंपरा के अनुसार, अष्टकौशल में आठ महंत और आठ उप महंत होते हैं। यह समिति अखाड़ों के प्रशासन और आर्थिक कार्यों की जिम्मेदारी संभालती है। निरंजनी अखाड़े के महंत शिव वन के अनुसार, यह समिति पूरी पारदर्शिता के साथ काम करती है और सभी निर्णय सामूहिक सहमति से लिए जाते हैं।
महाकुंभ के दौरान कार्यकारिणी भंग
प्रयागराज में अखाड़ों की छावनी स्थापित होते ही मौजूदा कार्यकारिणी का कार्यकाल समाप्त हो गया। जूना अखाड़े के महंत रमेश गिरि ने बताया कि छावनी में प्रवेश के साथ ही ‘चेहरा-मोहरा’ नामक पंचायत की व्यवस्था सक्रिय हो जाती है। कुंभ मेले के दौरान सभी प्रमुख निर्णय इस पंचायत के माध्यम से लिए जाते हैं।
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कुंभ की व्यवस्था और पंचायती परंपरा
कुंभ मेले के दौरान अखाड़ों की छावनी में स्थापित ‘धर्म ध्वजा’ और ‘चेहरा-मोहरा’ केंद्र बिंदु होते हैं। यहीं पर महंत और अन्य वरिष्ठ संन्यासी मिलकर मेले की व्यवस्थाओं से संबंधित फैसले लेते हैं। यह परंपरा पारदर्शिता और सहमति पर आधारित है।
अष्टकौशल का छह साल का कार्यकाल
महाकुंभ के समापन से पहले नए अष्टकौशल का गठन किया जाएगा। यह समिति अगले छह वर्षों तक अखाड़ों के आध्यात्मिक और प्रशासनिक कार्यों को संभालेगी। समिति में सचिव और अन्य पदाधिकारियों का चयन भी अष्टकौशल की सिफारिश पर होता है।
पंचायती राज और अखाड़ों की पारदर्शी व्यवस्था
अखाड़ों में पंचायती राज व्यवस्था के तहत महत्वपूर्ण निर्णय पंचों के माध्यम से लिए जाते हैं। यही कारण है कि कई अखाड़ों के नाम में ‘पंचायती’ शब्द जुड़ा होता है, जैसे- पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, तपोनिधि पंचायती निरंजनी अखाड़ा, श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा, आदि।
महाकुंभ 2025: परंपरा और अनुशासन का प्रतीक
महाकुंभ में अखाड़ों का यह अद्वितीय शासन मॉडल परंपरा, अनुशासन और सामूहिकता का प्रतीक है। हर निर्णय में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है और संत समाज के बीच एकता और विश्वास बनाए रखा जाता है।
निष्कर्ष:
महाकुंभ 2025 अखाड़ों की परंपरा और पंचायती व्यवस्था का सजीव उदाहरण है। यह न केवल आध्यात्मिक संगठन का अनुशासन बनाए रखता है, बल्कि सामूहिक सहमति और पारदर्शिता के माध्यम से आने वाले छह वर्षों के लिए अखाड़ों की कार्यशैली को भी निर्धारित करता है।

