राजस्थान के मलबों के पहाड़: बढ़ते खतरे और पारिस्थितिक संकट
राजस्थान के बीकानेर, कोटा, उदयपुर, और भीलवाड़ा जैसे जिलों में खनन गतिविधियों के कारण 1000 से अधिक मलबों के पहाड़ बन चुके हैं। इन पहाड़ों की ऊंचाई 500 फीट से अधिक है और इनके कारण क्षेत्र का भूगर्भीय संतुलन बिगड़ने की आशंका है।
खनन गतिविधियों का दुष्प्रभाव
खनिज संसाधनों की अत्यधिक खुदाई ने भूमि की सतह को नुकसान पहुंचाया है। खनन से बनी गहरी खदानों में बारिश का पानी भरने से यह क्षेत्र कृत्रिम झीलों में बदल गया है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। बीकानेर-जैसलमेर मार्ग पर कोलायत क्षेत्र, जो पहले समतल बंजर भूमि थी, अब मलबों के बड़े ढेरों से ढका हुआ है।
भूगर्भीय बदलाव की चेतावनी
राजकीय डूंगर कॉलेज बीकानेर के व्याख्याता विपिन सैनी ने कहा कि माइनिंग वेस्ट के कारण डेजर्ट इको सिस्टम में बदलाव हो रहा है। खनन के कारण कुछ क्षेत्रों में भूमि पर भारी दबाव बन रहा है, जिससे भूगर्भीय घटनाएं तेज हो सकती हैं।
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प्रमुख क्षेत्र और उनके प्रभाव
- भीलवाड़ा: जहाजपुर और हमीरगढ़ में खनन से 20 मलबों के पहाड़ बन गए हैं, जिससे जलस्तर और गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है।
- उदयपुर: केसरियाजी और मोखमपुरा क्षेत्रों में मलबों की डम्पिंग ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है। यहां के मलबों के बीच पानी भरने से कृत्रिम झीलें बनी हैं।
- कोटा: कोटा स्टोन की खानों से निकले मलबे का उपयोग दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे निर्माण में हुआ, लेकिन भूमि बंजर हो चुकी है।
भविष्य की आशंका और समाधान
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर खनन और मलबा प्रबंधन को नियंत्रित नहीं किया गया, तो राजस्थान में भूगर्भीय घटनाओं और पारिस्थितिक संकटों की संभावना बढ़ सकती है। मलबों का पुनः उपयोग और खनन की सीमाओं का पालन इस समस्या को कम कर सकता है।