

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: बुजुर्गों की सेवा न करने पर गिफ्ट डीड हो सकती है रद्द
नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्ग माता-पिता के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अब यदि संतान अपने माता-पिता की सेवा और देखभाल नहीं करती है, तो माता-पिता द्वारा उपहार में दी गई संपत्ति की गिफ्ट डीड रद्द की जा सकती है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी वरिष्ठ नागरिक ने संपत्ति इस शर्त पर दी है कि उन्हें सेवा और बुनियादी सुविधाएं दी जाएंगी, और यह शर्त पूरी नहीं होती, तो संपत्ति हस्तांतरण को धोखाधड़ी माना जाएगा। ऐसे मामलों में वरिष्ठ नागरिक संपत्ति वापस लेने के लिए ट्रिब्युनल का सहारा ले सकते हैं।
मध्यप्रदेश के एक मामले में जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को पलटते हुए यह व्यवस्था दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण कानून, 2007 के सेक्शन 23 के तहत संपत्ति का यह हस्तांतरण शून्य घोषित किया जा सकता है।
मध्यप्रदेश का मामला
मध्यप्रदेश की उर्मिला दीक्षित ने अपने बेटे सुनील शरण दीक्षित को इस शर्त पर संपत्ति उपहार में दी थी कि वह उनकी देखभाल करेगा। लेकिन बेटे की उपेक्षा और दुर्व्यवहार के कारण उर्मिला ने ट्रिब्युनल में गिफ्ट डीड रद्द करने का मामला दायर किया।
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- ट्रिब्युनल ने उर्मिला दीक्षित के पक्ष में फैसला सुनाया।
- हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इसे खारिज कर दिया।
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए 28 फरवरी तक संपत्ति का कब्जा वापस दिलाने का आदेश दिया।
बुजुर्गों को होगा यह लाभ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून का उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए ताकि इसका उद्देश्य पूरा हो।
- सेक्शन 23 के तहत यदि बच्चों ने संपत्ति मिलने के बाद माता-पिता की सेवा नहीं की, तो संपत्ति का हस्तांतरण शून्य घोषित होगा।
- यह सुनिश्चित करेगा कि बुजुर्गों का सम्मान और अधिकार सुरक्षित रहें।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का फैसला क्यों खारिज हुआ?
हाईकोर्ट ने कहा था कि गिफ्ट डीड में माता-पिता की देखभाल की शर्त स्पष्ट होनी चाहिए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह शर्त ट्रिब्युनल के माध्यम से लागू की जा सकती है।