कोटपूतली के किरतपुरा गांव में बड़ियाली की ढाणी में बोरवेल में गिरी तीन वर्षीय चेतना को 10वें दिन बाहर निकाला गया। लेकिन बच्ची को बचाया नहीं जा सका। एनडीआरएफ और अन्य टीमों द्वारा 220 घंटे चले रेस्क्यू अभियान के बाद बुधवार शाम करीब 6:30 बजे चेतना को बोरवेल से बाहर लाया गया।
पोस्टमार्टम के बाद रात में अंतिम संस्कार
चेतना का शव महावीर जाट द्वारा सफेद कपड़े में लपेटकर निकाला गया और तुरंत बीडीएम अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पोस्टमार्टम के बाद पुलिस की मौजूदगी में बच्ची का शव परिजनों को सौंपा गया। शरीर की स्थिति को देखते हुए प्रशासन की सलाह पर उसी रात बच्ची का अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस दौरान माहौल बेहद गमगीन था, और हर किसी की आंखें नम थीं।
चेतना की मां धोली देवी का दर्द देखकर हर कोई भावुक हो गया। वह बार-बार कहती रहीं, “मेरी बच्ची को एक बार और दिखा दो।”
शरीर की स्थिति के कारण रात में अंतिम संस्कार जरूरी
10 दिनों तक बोरवेल में फंसी रहने के कारण बच्ची का शरीर खराब होने लगा था। टीम ने मास्क पहनकर काम किया, और इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए रात में ही अंतिम संस्कार करना पड़ा।
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रेस्क्यू अभियान की चुनौतियां
एनडीआरएफ के जवान महावीर जाट ने चेतना को बोरवेल से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बोरवेल में जहां चेतना फंसी थी, वहां पत्थर और मिट्टी के बीच से उसे निकालना काफी चुनौतीपूर्ण था। पहले प्लान ए के तहत उसके स्वेटर में हुक फंसाने की कोशिश की गई, लेकिन स्वेटर फटने से यह प्रयास विफल रहा। आखिरकार पत्थरों को काटकर बच्ची को बाहर निकाला गया।
राजस्थान का सबसे बड़ा रेस्क्यू अभियान
यह प्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा रेस्क्यू अभियान था, जो 220 घंटे तक चला। इसमें एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सिविल डिफेंस, पुलिस, और नगर परिषद समेत कई विभागों की टीमें जुटी रहीं। हालांकि, सभी प्रयासों के बावजूद चेतना को बचाया नहीं जा सका।
इस घटना ने पूरे गांव और प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। गांव में मातम का माहौल है, और घरों में चूल्हे तक नहीं जले।