बोरवेल हादसों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी लगातार जारी है, जो 14 साल से प्रभावी हैं। इन आदेशों के बावजूद, हाल ही में कुछ और घटनाओं ने इस समस्या की गंभीरता को फिर से उजागर किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में बोरवेल और ट्यूबवेल में गिरने की घटनाओं पर दिशा-निर्देश जारी किए थे, लेकिन अब तक इन आदेशों का सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है।
हाल ही में राजस्थान के कोटपुतली-बहरोड़ जिले में एक तीन साल की बच्ची चेतना एक खुले बोरवेल में गिर गई थी, जिसे 150 फीट गहरे बोरवेल से बचाने के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें तैनात की गई थीं। इसी तरह, दिसंबर में राजस्थान के दौसा जिले में एक पांच साल का बच्चा आर्यन बोरवेल में गिर गया था, और 55 घंटे के बचाव अभियान के बाद उसे अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया था।
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट के 2010 के दिशा-निर्देशों के बावजूद बोरवेल हादसों में कमी नहीं आई है।
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2010 में जारी किए गए दिशा-निर्देशों में बोरवेल के चारों ओर कांटेदार तार की बाड़ लगाना, स्टील प्लेट कवर का उपयोग करना और बोरवेल को भरने के निर्देश शामिल थे। इसके अलावा, बोरवेल निर्माण के समय एक साइनबोर्ड पर ड्रिलिंग एजेंसी का पूरा पता और उपयोगकर्ता एजेंसी का विवरण देने की बात कही गई थी।
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में फिर से मामले की सुनवाई की थी और अधिकारियों से आदेशों के पालन पर जवाब मांगा था। लेकिन अब भी यह देखा जा रहा है कि इन आदेशों का सही तरीके से पालन नहीं हो रहा है, जिससे बोरवेल में गिरने की घटनाएं लगातार हो रही हैं।