जनवरी में 2500 शिक्षक होंगे बाहर, 300 कॉलेजों की पढ़ाई पर संकट
जयपुर। राजस्थान में नए साल की शुरुआत में 300 कॉलेजों में छात्रों की पढ़ाई पर संकट मंडरा रहा है। राजसेस सोसायटी के तहत संचालित इन कॉलेजों में विद्या संबल योजना के तहत कार्यरत 2500 अस्थायी शिक्षकों का कार्यकाल जनवरी के पहले सप्ताह में समाप्त हो जाएगा। इसके बाद इन शिक्षकों को कॉलेजों से हटा दिया जाएगा, जिससे छात्रों की पढ़ाई बाधित होने की संभावना है।
विद्या संबल योजना में बदलाव
कांग्रेस सरकार द्वारा लागू की गई विद्या संबल योजना में भाजपा सरकार ने बदलाव किए हैं। अब शिक्षकों को सेमेस्टर प्रणाली के अनुसार लगाया जाएगा और उन्हें हर साल दो बार आवेदन करना होगा। यह बदलाव कॉलेजों में पढ़ाई की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि समय पर शिक्षकों की नियुक्ति न होने से शिक्षण कार्य बाधित होगा।
शिक्षकों की शिकायतें
विद्या संबल योजना के तहत कार्यरत अस्थायी शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि सरकार न तो उन्हें समय पर भुगतान करती है और न ही कॉलेजों में पढ़ाने का अनुभव प्रमाण पत्र प्रदान करती है। इसके चलते उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
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जुलाई 2025 तक कार्यकाल बढ़ाने की मांग
राजस्थान विश्वविद्यालय और महाविद्यालय शिक्षक संघ ने मांग की है कि सरकार इन शिक्षकों का कार्यकाल जुलाई 2025 तक बढ़ाए। इससे द्वितीय और चतुर्थ सेमेस्टर के छात्रों की पढ़ाई प्रभावित नहीं होगी और शिक्षकों को बेरोजगारी का सामना नहीं करना पड़ेगा। संघ ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो शीतकालीन अवकाश के दौरान मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया जाएगा।
आदेश और चुनौतियां
कॉलेज आयुक्तालय द्वारा जारी आदेशों के अनुसार, अस्थायी शिक्षकों का कार्यकाल 24 सप्ताह या 28 फरवरी तक का था, जो जनवरी में समाप्त हो रहा है। इस कारण 2000 से अधिक शिक्षकों को हटाया जा रहा है।
शिक्षक संघ का बयान
डॉ. रामसिंह सामोता, सहायक आचार्य विद्या संबल योजना:
“सरकार को जुलाई 2025 तक कार्यकाल बढ़ाने का आदेश जारी करना चाहिए। इससे न केवल छात्रों की पढ़ाई जारी रहेगी, बल्कि 2 हजार नेट/पीएचडी धारकों को बेरोजगार होने से भी बचाया जा सकेगा।”
बनय सिंह, प्रदेश महामंत्री, राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ:
“सरकार नई शिक्षा नीति लागू करने की बात कर रही है, लेकिन अस्थायी शिक्षकों को हटाकर कॉलेजों की पढ़ाई चौपट कर रही है। यह कदम छात्रों और शिक्षा व्यवस्था दोनों के लिए हानिकारक है।”