पुणे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत में बढ़ते मंदिर-मस्जिद विवादों पर चिंता व्यक्त की और समावेशी समाज के निर्माण का आह्वान किया। पुणे में ‘भारत-विश्वगुरु’ विषय पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि राम मंदिर का निर्माण सभी हिंदुओं की आस्था का प्रतीक था, लेकिन अब कुछ लोग इसे बहस का मुद्दा बनाकर खुद को हिंदुओं का नेता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
राम मंदिर के बाद नई जगहों पर विवाद उठाने की कोशिशें गलत:
भागवत ने कहा, “राम मंदिर निर्माण इसलिए किया गया क्योंकि यह सभी हिंदुओं की आस्था का विषय था। लेकिन कुछ लोग अब नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं। यह स्वीकार्य नहीं है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि विवादों को बढ़ावा देने से देश की सद्भावना और एकता को नुकसान पहुंचेगा।
मंदिर-मस्जिद विवाद पर बयान:
हाल के महीनों में विभिन्न मस्जिदों के सर्वेक्षण और पुराने मंदिरों के दावों को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई हैं। हालांकि, भागवत ने किसी भी चल रहे मामले का नाम नहीं लिया। उन्होंने कहा कि भारत को एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत करना चाहिए जो दुनिया को दिखाए कि यहां लोग सद्भाव के साथ एक साथ रह सकते हैं।
इतिहास का हवाला:
भागवत ने इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि मुगल सम्राट औरंगजेब की कट्टरता का प्रभाव रहा है, लेकिन संविधान के तहत देश को मिल-जुलकर चलाने की आवश्यकता है। उन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बहादुर शाह जफर के योगदान का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया था।
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अंग्रेजों की चाल:
भागवत ने कहा, “अयोध्या में राम मंदिर हिंदुओं को दिए जाने का फैसला पहले ही हो गया था, लेकिन अंग्रेजों ने इसे भांपते हुए दोनों समुदायों के बीच विभाजन पैदा किया। इसके कारण ‘अलगाववाद’ की भावना बढ़ी और पाकिस्तान का गठन हुआ।”
भागवत का संदेश:
भागवत ने जोर देकर कहा कि भारत को समावेशी समाज का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए और सभी को साथ लेकर चलने की जरूरत है। उन्होंने अपील की कि धार्मिक विवादों से बचा जाए और देश में शांति और सद्भावना बनाए रखने पर जोर दिया।